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र॒क्षो॒हा वि॒श्वच॑र्षणिर॒भि योनि॒मयो॑हते। द्रोणे॑ स॒धस्थ॒मास॑दत् ॥२६ ॥

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पद पाठ

र॒क्षो॒हेति॑ रक्षः॒ऽहा। वि॒श्वच॑र्षणि॒रिति॑ वि॒श्वऽच॑र्षणिः। अ॒भि। योनि॑म्। अयः॑ऽहते। द्रोणे॑। स॒धस्थ॒मिति॑ स॒धऽस्थ॑म्। आ। अ॒स॒द॒त् ॥२६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:26» मन्त्र:26


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (रक्षोहा) दुष्ट प्राणियों को मारने हारा (विश्वचर्षणिः) सब संसार का प्रकाशक विद्वान् (अयोहते) सुवर्ण से प्राप्त हुए (द्रोणे) बीस सेर अन्न रखने के पात्र में (सधस्थम्) समान स्थितिवाले (योनिम्) घर में (अभि, आ, असदत्) अच्छे प्रकार स्थित होवे, वह सम्पूर्ण सुख को प्राप्त होवे ॥२६ ॥
भावार्थभाषाः - जो अविद्या अज्ञान के नाशक, विज्ञान के प्रकाशक, सब ऋतुओं में सुखकारी, सुवर्ण आदि से युक्त घरों में बैठ के विचार करें वे सुखी होते हैं ॥२६ ॥ इस अध्याय में पुरुषार्थ के फल, सब मनुष्यों को वेद पढ़ने सुनने का अधिकार, परमेश्वर विद्वान् और सत्य का निरूपण, अग्न्यादि पदार्थ, यज्ञ, सुन्दर घरों को बनाना और उत्तम स्थान में स्थिति आदि कही है, इससे इस अध्याय के अर्थ की पूर्व अध्याय में कहे अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्याणां श्रीपरमविदुषां विरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्येण श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिना विरचिते संस्कृतार्य्यभाषाभ्यां समन्विते सुप्रमाणयुक्ते यजुर्वेदभाष्ये षड्विंशोऽध्यायः पूर्तिमगात् ॥२६॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(रक्षोहा) यो रक्षांसि दुष्टान् प्राणिनो हन्ति सः (विश्वचर्षणिः) विश्वस्याऽखिलस्य प्रकाशकः (अभि) अभितः (योनिम्) गृहम् (अयोहते) अयसा सुवर्णेन प्राप्ते। अय इति हिरण्यनामसु पठितम् ॥ (निघ०१.२) (द्रोणे) पात्रविशेषे (सधस्थम्) समानस्थानम् (आ) (असदत्) तिष्ठेत् ॥२६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यो रक्षोहा विश्वचर्षणिर्विद्वानयोहते द्रोणे सधस्थं योनिमभ्यासदत् स सर्वं सुखमाप्नुयात् ॥२६ ॥
भावार्थभाषाः - येऽविद्याहन्तारो विद्याप्रकाशकाः सर्वर्त्तुसुखकरेषु सुवर्णादियुक्तेषु गृहेषु स्थित्वा विचारं कुर्युस्ते सुखिनो जायन्त इति ॥२६ ॥ अस्मिन्नध्याये पुरुषार्थफलवर्णनं सर्वेषां मनुष्याणां वेदपठनश्रवणाधिकारः परमेश्वरविद्वत्सत्यनिरूपण-मग्न्यादिपदार्थकथनं यज्ञवर्णनं सुन्दरगृहनिर्माणमुत्तमस्थाने स्थितिश्चोक्ताऽत एतदर्थस्य पूर्वाध्यायोक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक अविद्या व अज्ञान यांचा नाश करतात व विज्ञानाचा प्रकाश करतात, तसेच सर्व ऋतूत सुखदायी व संपत्तीयुक्त घरात राहून विचार विनिमय करतात ते सुखी होतात.