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अनु॑ वी॒रैरनु॑ पुष्यास्म॒ गोभि॒रन्वश्वै॒रनु॒ सर्वे॑ण पु॒ष्टैः। अनु॒ द्विप॒दाऽनु॒ चतु॑ष्पदा व॒यं दे॒वा नो॑ य॒ज्ञमृ॑तु॒था न॑यन्तु ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अनु॑। वी॒रैः। अनु॑। पु॒ष्या॒स्म॒। गोभिः॑। अनु॑। अश्वैः॑। अनु॑। सर्वे॑ण। पु॒ष्टैः। अनु॑। द्विप॒देति॒ द्विऽप॑दा। अनु॑। चतु॑ष्पदा। चतुः॑प॒देति॒ चतुः॑पदा। व॒यम्। दे॒वाः। नः॒। य॒ज्ञम्। ऋ॒तु॒थेत्यृ॑तु॒ऽथा। न॒य॒न्तु॒ ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:26» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् लोगो ! जैसे (वयम्) हम लोग (पुष्टैः) पुष्ट (वीरैः) प्रशस्त बलवाले वीरपुरुषों की (अनु, पुष्यास्म) पुष्टि से पुष्ट हों, बलवती (गोभिः) गौओं की पुष्टि से (अनु) पुष्ट हों, बलवान् (अश्वैः) घोड़े आदि की पुष्टि से (अनु) पुष्ट हों, (सर्वेण) सब की पुष्टि से (अनु) पुष्ट हों, (द्विपदा) दो पगवाले मनुष्य आदि प्राणियों की पुष्टि से (अनु) पुष्ट हों और (चतुष्पदा) चार पगवाले गौ आदि की (अनु) पुष्टि से पुष्ट हों, वैसे (देवाः) विद्वान् लोग (नः) हमारे (यज्ञम्) धर्मयुक्त व्यवहार को (ऋतुथा) ऋतुओं से (नयन्तु) प्राप्त करें ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि वीर पुरुषों और पशुओं को अच्छे प्रकार पुष्ट करके पश्चात् आप पुष्ट हों और सदा वसन्तादि ऋतुओं के अनुकूल व्यवहार किया करें ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अनु) (वीरैः) प्रशस्तबलैः (अनु) (पुष्यास्म) पुष्टा भवेम (गोभिः) धेनुभिः (अनु) (अश्वैः) (अनु) (सर्वेण) (पुष्टैः) (अनु) (द्विपदा) मनुष्यादिना (अनु) (चतुष्पदा) गवादिना (वयम्) (देवाः) विद्वांसः (नः) अस्माकम् (यज्ञम्) धर्म्यं व्यवहारम् (ऋतुथा) ऋतुभिः (नयन्तु) प्रापयन्तु ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वांसो यथा वयं पुष्टैर्वीरैरनु पुष्यास्म पुष्टैर्गोभिरनुपुष्याम पुष्टैरश्वैरनुपुष्याम सर्वेणानुपुष्याम द्विपदाऽनुपुष्याम चतुष्पदानुपुष्याम तथा देवा नो यज्ञमृतुथा नयन्तु ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्वीरपुरुषान् पशूंश्च सम्पोष्यानुपोषणीयम्। सदा ऋत्वनुकूलो व्यवहारः कर्त्तव्यश्च ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी वीर पुरुष व पशू यांना बलवान करावे व स्वतः बलवान व्हावे आणि नेहमी वसंत इत्यादी ऋतुनुसार व्यवहार करावा.