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तं वो॑ द॒स्ममृ॑ती॒षहं॒ वसो॑र्मन्दा॒नमन्ध॑सः। अ॒भि व॒त्सं न स्वस॑रेषु धे॒नव॒ऽइन्द्रं॑ गी॒र्भिर्न॑वामहे ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। वः॒। द॒स्मम्। ऋ॒ती॒षह॑म्। ऋ॒ति॒सह॒मित्यृति॒ऽसह॑म्। वसोः॑। म॒न्दा॒नम्। अन्ध॑सः। अ॒भि। व॒त्सम्। न। स्वस॑रेषु। धे॒नवः॑। इन्द्र॑म्। गी॒र्भिरिति॑ गी॒ऽभिः। न॒वा॒म॒हे॒ ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:26» मन्त्र:11


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! हम लोग (स्वसरेषु) दिनों में (धेनवः) गौएँ (वत्सम्) जैसे बछड़े को (न) वैसे जिस (दस्मम्) दुःखविनाशक (ऋतीषहम्) चाल को सहनेवाले (वसोः) धन और (अन्धसः) अन्न के (मन्दानम्) आनन्द को पाए हुए (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवान् सभापति की (वः) तुम्हारे लिये (गीर्भिः) वाणियों से (अभि, नवामहे) सब ओर से स्तुति करते हैं, वैसे ही (तम्) उस सभापति की आप लोग सदा प्रीतिभाव से स्तुति कीजिये ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे गौएँ प्रतिदिन अपने-अपने बछड़ों को पालती हैं, वैसे ही प्रजाजनों की रक्षा करनेवाला पुरुष प्रजा की नित्य रक्षा करे और प्रजा के लिये धन और अन्न आदि पदार्थों से सुखों को नित्य बढ़ाया करे ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

(तम्) (वः) युष्मभ्यम् (दस्मम्) दुःखोपक्षयितारम् (ऋतीषहम्) गतिसहम्। अत्र संहितायाम्। [अ०६.३.११४] इति दीर्घः (वसोः) धनस्य (मन्दानम्) आनन्दन्तम् (अन्धसः) अन्नस्य (अभि) सर्वतः (वत्सम्) (न) इव (स्वसरेषु) दिनेषु (धेनवः) गावः (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तम् (गीर्भिः) वाग्भिः (नवामहे) स्तुवीमहे ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! वयं स्वसरेषु धेनवो वत्सं न यं दस्ममृतीषहं वसोरन्धसो मन्दानमिन्द्रं वो गीर्भिरभि नवामहे तथा तं भवन्तोऽपि सदा प्रीतिभावेन स्तुवन्तु ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा गावः प्रतिदिनं स्वं स्वं वत्सं पालयन्ति तथैव प्रजारक्षकः पुरुषः प्रजा नित्यं रक्षेत् प्रजायै धनधान्यैः सुखानि वर्धयेत् ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशा गाई दररोज आपापल्या वारसांचे पालन व रक्षण करतात तसे राजाने प्रजेचे रक्षण करावे. प्रजेसाठी धन व अन्न इत्यादी पदार्थांनी सुख वाढवावे.