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यद्वातो॑ऽअ॒पोऽअग॑नीगन्प्रि॒यामिन्द्र॑स्य त॒न्व᳖म्। ए॒तस्तो॑तर॒नेन॑ प॒था पुन॒रश्व॒माव॑र्त्तयासि नः ॥७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। वातः॑। अ॒पः। अग॑नीगन्। प्रि॒याम्। इन्द्र॑स्य। त॒न्व᳖म्। ए॒तम्। स्तो॒तः॒। अ॒नेन॑। प॒था। पुनः॑। अश्व॑म्। आ। व॒र्त्त॒या॒सि॒। नः॒ ॥७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:7


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य किसका सङ्ग करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (स्तोतः) स्तुति करनेहारे जन ! जैसे शिल्पी लोग (इन्द्रस्य) बिजुली के (प्रियाम्) अति सुन्दर (तन्वम्) विस्तारयुक्त शरीर को (वातः) पवन के समान पाकर (यत्) जिस कलायन्त्र रूपी घोड़े और (अपः) जलों को (अगनीगन्) प्राप्त होते हैं, वैसे (एतम्) इस (अश्वम्) शीघ्र चलने हारे कलायन्त्र रूप घोड़े को (अनेन) उक्त बिजुली रूप (पथा) मार्ग से आप प्राप्त होते (पुनः) फिर (नः) हम लोगों को (आ, वर्त्तयासि) भलीभाँति वर्त्ताते अर्थात् इधर-उधर ले जाते हो, उन आपका हम लोग सत्कार करें ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो तुम को अच्छे मार्ग से चलाते हैं, उनके सङ्ग से तुम लोग पवन और बिजुली आदि की विद्या को प्राप्त होओ ॥७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यः कस्य सङ्गं कुर्य्यादित्याह ॥

अन्वय:

(यत्) यं कलायन्त्राश्वम् (वातः) वायुः (अपः) जलानि (अगनीगन्) प्राप्नुवन्ति (प्रियाम्) कमनीयम् (इन्द्रस्य) विद्युतः (तन्वम्) विस्तृतं शरीरम् (एतम्) (स्तोतः) स्तावक (अनेन) (पथा) मार्गेण (पुनः) (अश्वम्) आशुगामिनम् (आ) (वर्त्तयासि) वर्त्तयेः (नः) अस्मान् ॥७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्तोतर्यथा शिल्पिजना इन्द्रस्य प्रियां तन्वं वात इव प्राप्य यद्यमपोऽगनीगँस्तथैतमश्वमनेन पथा त्वं प्राप्नोषि पुनर्नोऽस्मानावर्त्तयासि तं भवन्तं वयं सत्कुर्याम ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! ये युष्मान् सुमार्गेण गमयन्ति, तत्सङ्गेन यूयं वायुविद्युदादिविद्यां प्राप्नुत ॥७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे तुम्हाला चांगल्या मार्गाकडे नेतात त्यांच्याकडून तुम्ही लोक वायू व विद्युत इत्यादींची विद्या प्राप्त करा.