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काऽईम॑रे पिशङ्गि॒ला काऽर्इं॑ कुरुपिशङ्गि॒ला। कऽर्इ॑मा॒स्कन्द॑मर्षति॒ कऽर्इं॒ पन्थां॒ विस॑र्पति ॥५५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

का। ई॒म्। अ॒रे॒। पि॒श॒ङ्गि॒ला। का। ई॒म्। कु॒रु॒पि॒श॒ङ्गि॒लेति॑ कुरुऽपिशङ्गि॒ला। कः। ई॒म्। आ॒स्कन्द॒मित्या॒ऽस्कन्द॑म्। अ॒र्ष॒ति॒। कः। ई॒म्। पन्था॑म्। वि। स॒र्प॒ति॒ ॥५५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:55


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अगले मन्त्र में प्रश्न कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अरे) हे विदुषि स्त्रि ! (का, ईम्) कौन वार-वार (पिशङ्गिला) रूप का आवरण करने हारी (का, ईम्) कौन वार-वार (कुरुपिशङ्गिला) यवादि अन्नों के अवयवों को निगलनेवाली (क, ईम्) कौन वार-वार (आस्कन्दम्) न्यारी-न्यारी चाल को (अर्षति) प्राप्त होता और (कः) कौन (ईम्) जल के (पन्थाम्) मार्ग को (वि, सर्पति) विशेष पसर के चलता है ॥५५ ॥
भावार्थभाषाः - किससे रूप का आवरण? और किस से खेती आदि का विनाश होता? कौन शीघ्र भागता? और कौन मार्ग में पसरता है? ये चार प्रश्न हैं, इन के उत्तर अगले मन्त्र में जानो ॥५५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रश्नानाह ॥

अन्वय:

(का) (ईम्) समुच्चये (अरे) नीचसंबोधने (पिशङ्गिला) रूपावरणकारिणी (का) (ईम्) (कुरुपिशङ्गिला) (कः) (ईम्) (आस्कन्दम्) (अर्षति) प्राप्नोति (कः) (ईम्) उदकस्य (पन्थाम्) मार्गम् (वि) (सर्पति) ॥५५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - अरे स्त्रि ! का र्इं पिशङ्गिला का र्इं कुरुपिशङ्गिला क ईमास्कन्दमर्षति क र्इं पन्थां विसर्पतीति समाधेहि ॥५५ ॥
भावार्थभाषाः - केन रूपमाव्रियते? केन कृष्यादिर्नश्यते? कः शीघ्रं धावति? कश्च मार्गे प्रसरति? इति चत्वारः प्रश्नास्तेषामुत्तराणि परस्मिन् मन्त्रे वेदितव्यानि ॥५५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विश्वाच्या या रूपाला वारंवार कोण झाकून टाकते? कोणत्या गोष्टीमुळे शेतीचा नाश होतो? कुणाची चाल वारंवार वेगाने बदलते? जलमार्गाचा विस्तार कोण करतो? या चार प्रश्नांची उत्तरे पुढील मंत्रात आहेत.