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प॒ञ्चस्व॒न्तः पुरु॑ष॒ऽआवि॑वेश॒ तान्य॒न्तः पुरु॑षे॒ऽअर्पि॑तानि। ए॒तत्त्वात्र॑ प्रतिमन्वा॒नोऽअ॑स्मि॒ न मा॒यया॑ भव॒स्युत्त॑रो॒ मत्॥५२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प॒ञ्चस्विति॑। प॒ञ्चऽसु॑। अ॒न्तरित्य॒न्तः। पुरु॑षः। आ। वि॒वे॒श॒। तानि॑। अ॒न्तरित्य॒न्तः। पुरु॑षे। अर्पि॑तानि। ए॒तत्। त्वा॒। अत्र॑। प्र॒ति॒म॒न्वा॒न इति॑ प्रतिऽमन्वा॒नः। अ॒स्मि॒। न। मा॒यया॑। भ॒व॒सि॒। उत्त॑र॒ इत्युत्ऽत॑रः। मत्॥५२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:52


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पूर्व मन्त्र में कहे प्रश्नों के उत्तर अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जानने की इच्छावाले पुरुष ! (पञ्चसु) पाँच भूतों वा उनकी सूक्ष्म मात्राओं में (अन्तः) भीतर (पुरुषः) पूर्ण परमात्मा (आ, विवेश) अपनी व्याप्ति से अच्छे प्रकार व्याप्त हो रहा है, (तानि) वे पञ्चभूत वा तन्मात्रा (पुरुषे) पूर्ण परमात्मा पुरुष के (अन्तः) भीतर (अर्पितानि) स्थापित किये हैं, (एतत्) यह (अत्र) इस जगत् में (त्वा) आपको (प्रतिमन्वानः) प्रत्यक्ष जानता हुआ मैं समाधान-कर्त्ता (अस्मि) हूँ, जो (मायया) उत्तम बुद्धि से युक्त तू (भवसि) होता है तो (मत्) मुझ से (उत्तरः) उत्तम समाधान-कर्त्ता कोई भी (न) नहीं है, यह तू जान ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - परमेश्वर उपदेश करता है कि हे मनुष्यो ! मेरे ऊपर कोई भी नहीं है। मैं ही सब का आधार, सब में व्याप्त होके धारण करता हूँ। मेरे व्याप्त होने से सब पदार्थ अपने-अपने नियम में स्थित हैं। हे सब से उत्तम योगी विद्वान् लोगो ! आप लोग इस मेरे विज्ञान को जनाओ ॥५२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पूर्वमन्त्रोक्तप्रश्नयोरुत्तरमाह ॥

अन्वय:

(पञ्चसु) भूतेषु तन्मात्रासु या (अन्तः) (पुरुषः) पूर्णः परमात्मा (आ) (विवेश) स्वव्याप्त्याऽऽविष्टोऽस्ति (तानि) भूतानि तन्मात्राणि वा (अन्तः) मध्ये (पुरुषे) पूर्णे परमात्मनि (अर्पितानि) स्थापितानि (एतत्) (त्वा) त्वाम् (अत्र) (प्रतिमन्वानः) प्रत्यक्षेण विजानन् (अस्मि) (न) (मायया) प्रज्ञया। मायेति प्रज्ञानामसु पठितम् ॥ (निघं०३.२) (भवसि) (उत्तरः) उत्कृष्टं तारयति समादधाति सः (मत्) मम सकाशात्॥५२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासो ! पञ्चस्वन्तः पुरुष आ विवेश तानि पुरुषेऽन्तरर्पितानि। एतदत्र त्वा प्रतिमन्वानोऽहं समाधाताऽस्मि। यदि मायया युक्तस्त्वं भवसि तर्हि मदुत्तरः समाधाता कश्चिन्नास्तीति विजानीहि ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - परमेश्वर उपदिशति−हे मनुष्याः ! मदुत्तरः कोऽपि नास्ति। अहमेव सर्वेषामाधारः सर्वमभिव्याप्य धरामि। मयि व्याप्ते सर्वाणि वस्तूनि स्वस्वनियमे स्थितानि सन्ति। हे सर्वोत्तमा योगिनो विद्वांसो ! भवन्तो ममेदं विज्ञानं विज्ञापयत ॥५२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - परमेश्वर उपदेश करतो की हे माणसांनो ! माझ्यापेक्षा मोठा कोणी नाही. मीच सर्वांचा आधार असून सर्वात व्याप्त असून, सर्वांना धारण करतो. मी सर्वात व्याप्त असल्यामुळे सर्व पदार्थ आपापल्या नियमात स्थित आहेत. हे उत्तम योगी विद्वानांनो ! माझे हे विज्ञान तुम्ही जाणा.