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होता॑ यक्षद॒श्विनौ॒ छाग॑स्य व॒पाया॒ मेद॑सो जु॒षेता॑ ह॒विर्होत॒र्यज॑। होता॑ यक्ष॒त्सर॑स्वतीं मे॒षस्य॑ व॒पाया॒ मेद॑सो जु॒षता॑ ह॒विर्होत॒र्यज॑। होता॑ यक्ष॒दिन्द्र॑मृष॒भस्य॑ व॒पाया॒ मेद॑सो जु॒षता॑ ह॒विर्होत॒र्यज॑ ॥४१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। अ॒श्विनौ॑। छाग॑स्य। व॒पायाः॑। मेद॑सः। जु॒षेता॑म्। ह॒विः। होतः॑। यज॑। होता॑। य॒क्ष॒त्सर॑स्वतीम्। मे॒षस्य॑। व॒पायाः॑। मेद॑सः। जु॒षता॑म्। ह॒विः। होतः॑। यज॑। होता॑। य॒क्ष॒त्। इन्द्र॑म्। ऋ॒ष॒भस्य॑। व॒पायाः॑। मेद॑सः। जु॒षता॑म्। ह॒विः। होतः॑। यज॑ ॥४१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:21» मन्त्र:41


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) देने हारे ! तू जैसे (होता) और देने हारा (यक्षत्) अनेक प्रकार के व्यवहारों की सङ्गति करे (अश्विनौ) पशु पालने वा खेती करनेवाले (छागस्य) बकरा, गौ, भैंस आदि पशुसम्बन्धी वा (वपायाः) बीज बोने वा सूत के कपड़े आदि बनाने और (मेदसः) चिकने पदार्थ के (हविः) लेने-देने योग्य व्यवहार का (जुषेताम्) सेवन करें, वैसे (यज) व्यवहारों की सङ्गति कर। हे (होतः) देने हारे जन ! तू जैसे (होता) लेने हारा (मेषस्य) मेढ़ा के (वपायाः) बीज को बढ़ानेवाली क्रिया और (मेदसः) चिकने पदार्थ सम्बन्धी (हविः) अग्नि आदि में छोड़ने योग्य संस्कार किये हुए अन्न आदि पदार्थ और (सरस्वतीम्) विशेष ज्ञानवाली वाणी का (जुषताम्) सेवन करे (यक्षत्) वा उक्त पदार्थों का यथायोग्य मेल करें, वैसे (यज) सब पदार्थों का यथायोग्य मेल कर। हे (होतः) देने हारे ! तू जैसे (होता) लेने हारा (ऋषभस्य) बैल को (वपायाः) बढ़ानेवाली रीति और (मेदसः) चिकने पदार्थ सम्बन्धी (हविः) देने योग्य पदार्थ और (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्य करनेवाले का (जुषताम्) सेवन करे वा यथायोग्य (यक्षत्) उक्त पदार्थों का मेल करे, वैसे (यज) यथायोग्य पदार्थों का मेल कर ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य पशुओं की संख्या और बल को बढ़ाते हैं, वे आप भी बलवान् होते और जो पशुओं से उत्पन्न हुए दूध और उस से उत्पन्न हुए घी का सेवन करते, वे कोमल स्वभाववाले हाते हैं और जो खेती करने आदि के लिए इन बैलों को युक्त करते हैं, वे धनधान्ययुक्त होते हैं ॥४१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(होता) दाता (यक्षत्) (अश्विनौ) पशुपालकृषीवलौ (छागस्य) अजादेः (वपायाः) बीजतन्तुसन्तानिकायाः क्रियायाः (मेदसः) स्निग्धस्य (जुषेताम्) सेवेताम् (हविः) होतव्यम् (होतः) दातः (यज) (होता) आदाता (यक्षत्) (सरस्वतीम्) विज्ञानवतीं वाचम् (मेषस्य) अवेः (वपायाः) बीजवर्द्धिकायाः क्रियायाः (मेदसः) स्नेहयुक्तस्य पदार्थस्य (जुषताम्) सेवताम् (हविः) प्रक्षेप्तव्यं सुसंस्कृतमन्नादिकम् (होतः) (यज) (होता) (यक्षत्) (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यकारकम् (ऋषभस्य) वृषभस्य (वपायाः) वर्द्धिकाया रीत्याः (मेदसः) स्नेहस्य (जुषताम्) सेवताम् (हविः) दातव्यम् (होतः) (यज) ॥४१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतस्त्वं यथा होता यक्षदश्विनौ छागस्य वपाया मेदसो हविर्जुषेताम् तथा यज। हे होतस्त्वं यथा होता मेषस्य वपाया मेदसो हविः सरस्वतीञ्च जुषतां यक्षत्तथा यज। हे होतस्त्वं यथा होतर्षभस्य वपाया मेदसो हविरिन्द्रं च जुषतां यक्षत्तथा यज ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः पशुसंख्यां बलं च वर्धयन्ति, ते स्वयमपि बलिष्ठा जायन्ते। ये पशुजं दुग्धं तज्जमाज्यं च स्निग्धं सेवन्ते, ते कोमलप्रकृतयो भवन्ति। ये कृषिकरणाद्यायैतान् वृषभान् युञ्जन्ति, ते धनधान्ययुक्ता जायन्ते ॥४१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे पशूंची संख्या व बल वाढवितात ती स्वतः बलवान होतात व जी पशूंपासून उत्पन्न झालेले दूध व त्यापासून उत्पन्न झालेल्या तुपाचे सेवन करतात, ती कोमल स्वभावाची असतात व जी माणसे शेतीसाठी बैलांचा वापर करतात ती धनधान्यांनीयुक्त होतात.