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यस्मि॒न्नश्वा॑सऽऋष॒भास॑ऽउ॒क्षणो॑ व॒शा मे॒षाऽअ॑वसृ॒ष्टास॒ऽआहु॑ताः। की॒ला॒ल॒पे सोम॑पृष्ठाय वे॒धसे॑ हृ॒दा म॒तिं ज॑नय॒ चारु॑म॒ग्नये॑ ॥७८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्मि॑न्। अश्वा॑सः। ऋ॒ष॒भासः॑। उ॒क्षणः॑। व॒शाः। मे॒षाः। अ॒व॒सृ॒ष्टास॒ इत्य॑वऽसृ॒ष्टासः॑। आहु॑ता॒ इत्याऽहु॑ताः। की॒ला॒ल॒प इति॑ कीलाल॒ऽपे। सोम॑पृष्ठा॒येति॒ सोम॑ऽपृष्ठाय। वे॒धसे॑। हृ॒दा। म॒तिम्। ज॒न॒य॒। चारु॑म्। अ॒ग्नये॑ ॥७८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:78


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (अश्वासः) घोड़े और (ऋषभासः) उत्तम बैल तथा (उक्षणः) अतिबली वीर्य के सेचन करनेहारे बैल (वशाः) वन्ध्या गायें और (मेषाः) मेढ़ा (अवसृष्टासः) अच्छे प्रकार शिक्षा पाये और (आहुताः) सब ओर से ग्रहण किये हुए (यस्मिन्) जिस व्यवहार में काम करनेहारे हों। उसमें तू (हृदा) अन्तःकरण से (सोमपृष्ठाय) सोमविद्या को पूछने और (कीलालपे) उत्तम अन्न के रस को पीनेहारे (वेधसे) बुद्धिमान् (अग्नये) अग्नि के समान प्रकाशमान जन के लिये (चारुम्) अति उत्तम (मतिम्) बुद्धि को (जनय) प्रकट कर ॥७८ ॥
भावार्थभाषाः - पशु भी सुशिक्षा पाये हुए उत्तम कार्य सिद्ध करते हैं, क्या फिर विद्या की शिक्षा से युक्त मनुष्य लोग सब उत्तम कार्य सिद्ध नहीं कर सकते? ॥७८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यस्मिन्) व्यवहारे (अश्वासः) वाजिनः (ऋषभासः) वृषभाः (उक्षणः) सेक्तारः (वशाः) वन्ध्या गावः (मेषाः) अवयः (अवसृष्टासः) सुशिक्षिताः (आहुताः) समन्ताद् गृहीताः (कीलालपे) यः कीलालमन्नरसं पिबति तस्मै (सोमपृष्ठाय) सोमः पृष्ठो येन तस्मै (वेधसे) मेधाविने (हृदा) अन्तःकरणेन (मतिम्) बुद्धिम् (जनय) (चारुम्) श्रेष्ठाम् (अग्नये) अग्निवत् प्रकाशमानाय जनाय ॥७८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! अश्वास ऋषभास उक्षणो वशा मेषा अवसृष्टास आहुतास्सन्तो यस्मिन् कार्यकरा स्युस्तस्मिँस्त्वं हृदा सोमपृष्ठाय कीलालपे वेधसेऽग्नये चारु मतिं जनय ॥७८ ॥
भावार्थभाषाः - पशवोऽपि सुशिक्षितास्सन्त उत्तमानि कार्य्याणि कुर्वन्ति, किं पुनर्विद्याशिक्षायुक्ता जनाः सर्वाण्युत्तमानि कार्याणि साद्धुं न शक्नुवन्ति? ॥७८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - प्रशिक्षित पशूही उत्तम कार्य करतात तेव्हा विद्या प्राप्त केलेली सुशिक्षित माणसे उत्तम कार्य करु शकणार नाहीत काय ?