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तस्य॑ व॒यꣳ सु॑म॒तौ य॒ज्ञिय॒स्यापि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म। स सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒२ऽइन्द्रो॑ऽअ॒स्मेऽआ॒राच्चि॒द् द्वेषः॑ सनु॒तर्यु॑योतु ॥५२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तस्य॑। व॒यम्। सु॒म॒ताविति॑ सुऽम॒तौ। य॒ज्ञिय॑स्य। अपि॑। भ॒द्रे। सौ॒म॒न॒से। स्या॒म॒। सः। सु॒त्रामेति॑ सु॒ऽत्रामा॑। स्ववा॒निति॒ स्वऽवा॑न्। इन्द्रः॑। अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे। आ॒रात्। चि॒त्। द्वेषः॑। स॒नु॒तः। यु॒यो॒तु॒ ॥५२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:52


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सुत्रामा) अच्छे प्रकार से रक्षा करने और (स्ववान्) प्रशंसित अपना कुल रखनेहारा (इन्द्रः) पिता के समान वर्त्तमान सभा का अध्यक्ष (अस्मे) हमारे (द्वेषः) शत्रुओं को (आरात्) दूर और समीप से (चित्) भी (सनुतः) सब काल में (युयोतु) दूर करे, (तस्य) उस पूर्वोक्त (यज्ञियस्य) यज्ञ के अनुष्ठान करने योग्य राजा की (सुमतौ) सुन्दर मति में और (भद्रे) कल्याण करनेहारे (सौमनसे) सुन्दर मन में उत्पन्न हुए व्यवहार में (अपि) भी हम लोग राजा के अनुकूल बरतने हारे (स्याम) होवें और (सः) वह हमारा राजा और (वयम्) हम उसकी प्रजा अर्थात् उस के राज्य में रहनेवाले हों ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उसकी सम्मति में स्थिर रहना उचित है, जो पक्षपातरहित और न्याय से प्रजापालन में तत्पर हो ॥५२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(तस्य) पूर्वोक्तस्य सभेशस्य राज्ञः (वयम्) राजप्रजाः (सुमतौ) सुष्ठु संमतौ (यज्ञियस्य) यज्ञमनुष्ठातुमर्हस्य (अपि) (भद्रे) कल्याणकरे (सौमनसे) शोभने मनसि भवे व्यवहारे (स्याम) (सः) (सुत्रामा) सुष्ठु त्रामा (स्ववान्) प्रशस्तं स्वं विद्यते यस्य सः (इन्द्रः) पितृवद्वर्तमानः सभेशः (अस्मे) अस्माकम् (आरात्) दूरात् समीपाद्वा (चित्) अपि (द्वेषः) शत्रून् (सनुतः) सदा (युयोतु) दूरीकरोतु ॥५२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यस्सुत्रामा स्ववानिन्द्रः सभेशोऽस्मे द्वेष आराच्चित्सनुतर्युयोतु तस्य यज्ञियस्य सुमतौ भद्रे सौमनसेऽप्युकूलाः स्याम, सोऽस्माकं राजा वयं तस्य प्रजाश्च ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैस्तस्यैव सम्मतौ स्थातव्यं यः पक्षपातहीनो धार्मिकः न्यायेन प्रजापालनतत्परः स्यात् ॥५२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी त्या राजाला मान्यता द्यावी जो पक्षपातरहित असतो व न्यायाने प्रजापालन करण्यात तत्पर असतो.