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अ॒पोऽअ॒द्यान्व॑चारिष॒ꣳ रसे॑न॒ सम॑सृक्ष्महि। पय॑स्वाग्न॒ऽआग॑मं॒ तं मा॒ सꣳसृ॑ज॒ वर्च॑सा प्र॒जया॑ च॒ धने॑न च ॥२२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒पः। अ॒द्य। अनु॑। अ॒चा॒रि॒ष॒म्। रसे॑न। सम्। अ॒सृ॒क्ष्म॒हि॒। पय॑स्वान्। अ॒ग्ने॒। आ। अ॒ग॒म॒म्। तम्। मा॒। सम्। सृ॒ज॒। वर्च॑सा। प्र॒जयेति॑ प्र॒जया॑। च॒। धने॑न। च॒ ॥२२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:22


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अध्यापक और उपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के समान विद्वान् ! जो (पयस्वान्) प्रशंसित जल की विद्या से युक्त मैं तुझ को (आ, अगमम्) प्राप्त होऊँ वा (अद्य) आज (रसेन) मधुरादि रस से युक्त (अपः) जलों को (अन्वचारिषम्) अनुकूलता से पान करूँ, (तम्) उस (मा) मुझको (वर्चसा) साङ्गोपाङ्ग वेदाध्ययन (प्रजया) प्रजा (च) और (धनेन) धन से (च) भी (सम्, सृज) सम्यक् संयुक्त कर, जिससे ये लोग और मैं सब हम सुख के लिये (समसृक्ष्महि) संयुक्त होवें ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - यदि विद्वान् लोग पढ़ाने और उपदेश करने से अन्य लोगों को विद्वान् करें तो वे भी नित्य अधिक विद्यावाले हों ॥२२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्यापकोदेशकविषयमाह ॥

अन्वय:

(अपः) जलानि (अद्य) अस्मिन् दिने (अनु) (अचारिषम्) चरेयम् (रसेन) मधुरादिना (सम्) (असृक्ष्महि) संसृजेम, व्यत्येनात्मनेपदम् (पयस्वान्) प्रशस्तजलविद्यायुक्तः (अग्ने) अग्निरिव विद्वन् (आ) (अगमम्) प्राप्नुयाम् (तम्) (मा) माम् (सम्) (सृज) संयोजय (वर्चसा) साङ्गोपाङ्गवेदाध्ययनेन (प्रजया) सुसन्तानैः (च) (धनेन) (च) ॥२२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! यः पयस्वानहं त्वामागममद्य रसेन सहापोऽन्वचारिषम्, तं मा वर्चसा प्रजया च धनेन च संसृज, यत इमेऽहं च सर्वे वयं सुखाय समसृक्ष्महि ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - यदि विद्वांसोऽध्यापनोपदेशाभ्यामन्यान् विदुषः कुर्युस्तर्हि तेऽपि प्रत्यहमधिकविद्याः स्युः ॥२२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर विद्वान लोकांनी आपल्या अध्यापनाने व उपदेशाने इतर लोकांना विद्वान केले तर तेही अधिक विद्वान होतील.