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ब्रह्म॑ क्ष॒त्रं प॑वते॒ तेज॑ऽइन्द्रि॒यꣳ सुर॑या॒ सोमः॑ सु॒तऽआसु॑तो॒ मदा॑य। शु॒क्रेण॑ देव दे॒वताः॑ पिपृग्धि॒ रसे॒नान्नं॒ यज॑मानाय धेहि ॥५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ब्रह्म॑। क्ष॒त्रम्। प॒व॒ते॒। तेजः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। सुर॑या। सोमः॑। सु॒तः। आसु॑त॒ इत्याऽसु॑तः। मदा॑य। शु॒क्रेण। दे॒व॒। दे॒वताः॑। पि॒पृ॒ग्धि॒। रसे॑न। अन्न॑म्। यज॑मानाय। धे॒हि॒ ॥५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:5


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) सुखदाता विद्वान् ! जो (शुक्रेण) शीघ्र शुद्ध करनेहारे व्यवहार से (मदाय) आनन्द के लिये (सुरया) उत्पन्न होती हुई क्रिया से (सुतः) उत्पादित (आसुतः) अच्छे प्रकार रोगनिवारण के निमित्त सेवित (सोमः) ओषधियों का रस (तेजः) प्रगल्भता (इन्द्रियम्) मन आदि इन्द्रियगण (ब्रह्म) ब्रह्मवित् कुल और (क्षत्रम्) न्यायकारी क्षत्रिय-कुल को (पवते) पवित्र करता है, उस (रसेन) रस से युक्त (अन्नम्) अन्न को (यजमानाय) धर्मात्मा जन के लिये (धेहि) धारण कर (देवताः) विद्वानों को (पिपृग्धि) प्रसन्न कर ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - इस जगत् में किसी मनुष्य को योग्य नहीं है कि जो श्रेष्ठ रस के विना अन्न खावे, सदा विद्या शूरवीरता, बल और बुद्धि की वृद्धि के लिये महौषधियों के सारों को सेवन करना चाहिये ॥५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ब्रह्म) विद्वत्कुलम् (क्षत्रम्) न्यायकारिक्षत्रियकुलम् (पवते) पवित्रीकरोति (तेजः) प्रागल्भ्यम् (इन्द्रियम्) मनआदिकम् (सुरया) या सूयते सा सुरा तया (सोमः) ओषधिरसः (सुतः) सम्पादितः (आसुतः) समन्ताद् रोगनिवारणे सेवितः (मदाय) हर्षाय (शुक्रेण) आशु शुद्धिकरेण (देव) सुखप्रदातः (देवताः) देवा एव देवतास्ताः (पिपृग्धि) प्रीणीहि (रसेन) (अन्नम्) भोज्यम् (यजमानाय) सुखप्रदात्रे (धेहि) धर ॥५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे देव विद्वन् ! यः शुक्रेण मदाय सुरया सुत आसुतः सोमस्तेज इन्द्रियं ब्रह्म क्षत्रं च पवते, तेन रसेनान्नं यजमानाय धेहि, देवताः पिपृग्धि ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - नात्र केनचिन्मनुष्येण नीरसमन्नमत्तव्यम्, सदा विद्याशौर्यबलबुद्धिवर्द्धनाय महौषधिसारास्सेवनीयाः ॥५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या जगात कोणत्याही माणसाने निरस अन्न खाणे योग्य नाही म्हणून विद्या, शूरवीरता बल व बुद्धीची वाढ करण्यासाठी महा औषधांचे (रस) सेवन केले पाहिजे.