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ये स॑मा॒नाः सम॑नसो जी॒वा जी॒वेषु॑ माम॒काः। तेषा॒ श्रीर्मयि॑ कल्पता॒मस्मिँल्लो॒के श॒तꣳ समाः॑ ॥४६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। स॒मा॒नाः। सम॑नस॒ इति॒ सऽम॑नसः। जी॒वाः। जी॒वेषु॑। मा॒म॒काः। तेषा॑म्। श्रीः। मयि॑। क॒ल्प॒ता॒म्। अ॒स्मिन्। लो॒के। श॒तम्। समाः॑ ॥४६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:46


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

माता-पिता और सन्तान आपस में कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (अस्मिन्) इस (लोके) लोक में (जीवेषु) जीवते हुओं में (समानाः) समान गुण-कर्म-स्वभाववाले (समनसः) समान धर्म में मन रखनेहारे (मामकाः) मेरे (जीवाः) जीते हुए पिता आदि हैं, (तेषाम्) उन की (श्रीः) लक्ष्मी (मयि) मेरे समीप (शतम्) सौ (समाः) वर्षपर्यन्त (कल्पताम्) समर्थ होवे ॥४६ ॥
भावार्थभाषाः - सन्तान लोग जब तक पिता आदि जीवें, तब तक उनकी सेवा किया करें। पुत्र लोग जब तक पिता आदि की सेवा करें, तब तक वे सत्कार के योग्य होवें और जो पिता आदि का धनादि वस्तु हो, वह पुत्रों और जो पुत्रों का हो वह पिता आदि का रहे ॥४६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पितृसन्तानाः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

(ये) (समानाः) सदृग्गुणकर्मस्वभावाः (समनसः) समाने धर्मे मनो येषान्ते (जीवाः) ये जीवन्ति ते (जीवेषु) (मामकाः) मदीयाः (तेषाम्) (श्रीः) राज्यलक्ष्मीः (मयि) (कल्पताम्) (अस्मिन्) (लोके) (शतम्) (समाः) संवत्सराः ॥४६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - येऽस्मिँल्लोके जीवेषु समानाः समनसो मामका जीवास्सन्ति, तेषां श्रीर्मयि शतं समाः कल्पताम् ॥४६ ॥
भावार्थभाषाः - सन्ताना यावत् पितरो जीवेयुस्तावत् तान् सेवन्ताम्। पुत्रा यावत् पितृसेवकाः स्युस्तावत् ते सत्कर्त्तव्याः स्युर्यत् पितॄणां धनादिवस्तु तत्पुत्राणां यत्पुत्राणां तत्पितॄणाञ्चास्तु ॥४६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जिवंत असेपर्यंत पित्याची संतानांनी सेवा करावी. जोपर्यंत ते सेवा करतात तोपर्यंत ते मान देण्यायोग्य असतात. पित्याच्या धनावर पुत्राचा अधिकार असावा व जे पुत्रांचे असेल त्यात पित्याचाही भाग असावा.