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अग्न॒ऽआयू॑षि पवस॒ऽआ सु॒वोर्ज॒मिषं॑ च नः। आ॒रे बा॑धस्व दु॒च्छुना॑म् ॥३८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। आयू॑षि। प॒व॒से॒। आ। सु॒व॒। ऊर्ज॑म्। इष॑म्। च॒। नः॒। आ॒रे। बा॒ध॒स्व॒। दु॒च्छुना॑म् ॥३८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:38


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय का अगले मन्त्र में उपदेश किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् पिता, पितामह और प्रपितामह ! जो आप (नः) हमारे (आयूंषि) आयुर्दाओं को (पवसे) पवित्र करें, सो आप (ऊर्जम्) पराक्रम (च) और (इषम्) इच्छासिद्धि को (आ, सुव) चारों ओर से सिद्ध करिये और (आरे) दूर और निकट वसनेहारे (दुच्छुनाम्) दुष्ट कुत्तों के समान मनुष्यों के सङ्ग को (बाधस्व) छुड़ा दीजिये ॥३८ ॥
भावार्थभाषाः - पिता आदि लोग अपने सन्तानों में दीर्घ आयु, पराक्रम और शुभ इच्छा को धारण कराके अपने सन्तानों को दुष्टों के सङ्ग से रोक और श्रेष्ठों के सङ्ग में प्रवृत्त कराके धार्मिक चिरञ्जीवी करें, जिससे वे वृद्धावस्था में भी अप्रियाचरण कभी न करें ॥३८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अग्ने) विद्वन् पितः पितामह प्रपितामह (आयूंषि) अन्नादीनि (पवसे) पवित्रीकुर्याः। लेट्प्रयोगोऽयम् (आ) समन्तात् (सुव) प्रेर्ष्व (ऊर्जम्) पराक्रमम् (इषम्) इच्छासिद्धिम् (च) (नः) अस्माकम् (आरे) दूरे निकटे (बाधस्व) निवर्त्तय (दुच्छुनाम्) दुतो दुष्टाश्श्वान इव वर्त्तमानास्तेषाम् ॥३८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! यस्त्वं न आयूंषि पवसे, स त्वमूर्ज्जमिषं चासुव, आरे दुच्छुनां सङ्गं बाधस्व ॥३८ ॥
भावार्थभाषाः - पित्रादयोऽपत्येषु दीर्घायुः पराक्रमशुभेच्छा धारयित्वा स्वसन्तानान् दुष्टानां सङ्गान्निवार्य श्रेष्ठानां सङ्गे प्रवर्त्य धार्मिकान् दीर्घायुषः कुर्वन्तु, यतस्ते वृद्धावस्थायामप्यप्रियाचरणं कदाचिन्न कुर्युः ॥२८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - पित्याने आपल्या संतानांमध्ये दीर्घायुष्य, पराक्रम व शुभेच्छा धारण होतील, अशी उपाययोजना करावी. आपल्यर संतानांनी दुष्टांची संगत सोडून श्रेष्ठांची संगत धरावी यासाठी त्यांना प्रवृत्त करावे. धार्मिक आणि आयुष्यमान बनण्यासाठी मदत करावी. ज्यामुळे वृद्धावस्थेतही त्यांनी अप्रिय आचरण करू नये.