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शं च॑ मे॒ मय॑श्च मे प्रि॒यं च॑ मेऽनुका॒मश्च॑ मे॒ काम॑श्च मे सौमन॒सश्च॑ मे॒ भग॑श्च मे॒ द्रवि॑णं च मे भ॒द्रं च॑ मे॒ श्रेय॑श्च मे॒ वसी॑यश्च मे॒ यश॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शम्। च॒। मे॒। मयः॑। च॒। मे॒। प्रि॒यम्। च॒। मे॒। अ॒नु॒का॒म इत्य॑नुऽका॒मः। च॒। मे॒। कामः॑। च॒। मे॒। सौ॒म॒न॒सः। च॒। मे॒। भगः॑। च॒। मे॒। द्रवि॑णम्। च॒। मे॒। भ॒द्रम्। च॒। मे॒। श्रेयः॑। च॒। मे॒। वसी॑यः। च॒। मे॒। यशः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:8


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरा (शम्) सर्व सुख (च) और सुख की सब सामग्री (मे) मेरा (मयः) प्रत्यक्ष आनन्द (च) और इसके साधन (मे) मेरा (प्रियम्) पियारा (च) और इसके साधन (मे) मेरी (अनुकामः) धर्म के अनुकूल कामना (च) और इसके साधन (मे) मेरा (कामः) काम अर्थात् जिससे वा जिसमें कामना करें (च) तथा (मे) मेरा (सौमनसः) चित्त का अच्छा होना (च) और इसके साधन (मे) मेरा (भगः) ऐश्वर्य्य का समूह (च) और इसके साधन (मे) मेरा (द्रविणम्) बल (च) और इसके साधन (मे) मेरा (भद्रम्) अति आनन्द देने योग्य सुख (च) और सुख के साधन (मे) मेरा (श्रेयः) मुक्ति सुख (च) और इसके साधन (मे) मेरा (वसीयः) अतिशय करके वसनेवाला (च) और इसकी सामग्री (मे) मेरी (यशः) कीर्ति (च) और इसके साधन (यज्ञेन) सुख की सिद्धि करनेवाले ईश्वर से (कल्पन्ताम्) समर्थ होवें ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि जिस काम से सुख आदि की वृद्धि हो, उस काम का निरन्तर सेवन करें ॥८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(शम्) कल्याणम् (च) (मे) (मयः) ऐहिकं सुखम् (च) (मे) (प्रियम्) प्रीतिकारकम् (च) (मे) (अनुकामः) धर्मानुकूला कामना (च) (मे) (कामः) काम्यते येन यस्मिन् वा (च) (मे) (सौमनसः) शोभनं च तन्मनः सुमनस्तस्य भावः (च) (मे) (भगः) ऐश्वर्य्यसंघातः (च) (मे) (द्रविणम्) बलम् (च) (मे) (भद्रम्) भन्दनीयं सुखम् (च) (मे) (श्रेयः) मुक्तिसुखम् (च) (मे) (वसीयः) अतिशयेन वस्तृ वसीयः (च) (मे) (यशः) कीर्तिः (च) (मे) (यज्ञेन) सुखसिद्धिकरेणेश्वरेण (कल्पन्ताम्) ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे शं च मे मयश्च मे प्रियं च मेऽनुकामश्च मे कामश्च मे सौमनसश्च मे भगश्च मे द्रविणं च मे भद्रं च मे श्रेयश्च मे वसीयश्च मे यशश्च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्येन कर्मणा सुखादयो वर्द्धेरंस्तदेव कर्म सततं सेवनीयम् ॥८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या कामामुळे सुखाची वाढ होते ते काम माणसांनी सदैव करावे.