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प्रा॒णश्च॑ मेऽपा॒नश्च॑ मे व्या॒नश्च॒ मेऽसु॑श्च मे चि॒त्तं च॑ म॒ऽआधी॑तं च मे॒ वाक् च॑ मे॒ मन॑श्च मे॒ चक्षु॑श्च मे॒ श्रोत्रं॑ च मे॒ दक्ष॑श्च मे॒ बलं॑ च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रा॒णः। च॒। मे॒। अ॒पा॒न इत्य॑पऽआ॒नः। च॒। मे॒। व्या॒न इति॑ विऽआ॒नः। च॒। मे॒। असुः॑। च॒। मे॒। चि॒त्तम्। च॒। मे॒। आधी॑त॒मित्याऽधी॑तम्। च॒। मे॒। वाक्। च॒। मे॒। मनः॑। च॒। मे॒। चक्षुः॑। च॒। मे॒। श्रोत्र॑म्। च॒। मे। दक्षः॑। च॒। मे॒। बलम्। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:2


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरा (प्राणः) हृदयस्थ जीवनमूल (च) और कण्ठ देश में रहनेवाला पवन (मे) मेरा (अपानः) नाभि से नीचे को जाने (च) और नाभि में ठहरनेवाला पवन (मे) मेरा (व्यानः) शरीर की सन्धियों में व्याप्त (च) और धनञ्जय जो कि शरीर के रुधिर आदि को बढ़ाता है, वह पवन (मे) मेरा (असुः) नाग आदि प्राण का भेद (च) तथा अन्य पवन (मे) मेरी (चित्तम्) स्मृति अर्थात् सुधि रहनी (च) और बुद्धि (मे) मेरा (आधीतम्) अच्छे प्रकार किया हुआ निश्चित ज्ञान (च) और रक्षा किया हुआ विषय (मे) मेरी (वाक्) वाणी (च) और सुनना (मे) मेरी (मनः) संकल्प-विकल्प रूप अन्तःकरण की वृत्ति (च) अहङ्कारवृत्ति (मे) मेरा (चक्षुः) जिससे कि मैं देखता हूँ, वह नेत्र (च) और प्रत्यक्ष प्रमाण (मे) मेरा (श्रोत्रम्) जिससे कि मैं सुनता हूँ, वह कान (च) और प्रत्येक विषय पर वेद का प्रमाण (मे) मेरी (दक्षः) चतुराई (च) और तत्काल भान होना तथा (मे) मेरा (बलम्) बल (च) और पराक्रम ये सब (यज्ञेन) धर्म के अनुष्ठान से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग साधनों के सहित अपने प्राण आदि पदार्थों को धर्म के आचरण करने में संयुक्त करें ॥२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(प्राणः) हृदिस्थो वायुः (च) उदानः कण्ठदेशस्थः पवनः (मे) (अपानः) नाभेरधोगमी वातः (च) समानो नाभिसंस्थितो वायुः (मे) (व्यानः) शरीरस्य सर्वेषु संधिषु व्याप्तः पवनः (च) धनञ्जयः (मे) (असुः) नागादिर्मरुत् (च) अन्ये वायवः (मे) (चित्तम्) स्मृतिः (च) बुद्धिः (मे) (आधीतम्) समन्ताद् धृतिर्निश्चयवृत्तिः (च) रक्षितम् (मे) (वाक्) वाणी (च) श्रवणम् (मे) (मनः) संकल्पविकल्पात्मिका वृत्तिः (च) अहङ्कारः (मे) (चक्षुः) चक्षे पश्यामि येन तन्नेत्रम् (च) प्रत्यक्षप्रमाणम् (मे) (श्रोत्रम्) शृणोमि येन तत् (च) आगमप्रमाणम् (मे) (दक्षः) चातुर्य्यम् (च) सामयिकं भानम् (मे) (बलम्) (च) पराक्रमः (मे) (यज्ञेन) धर्मानुष्ठानेन (कल्पन्ताम्) ॥२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे प्राणश्च मेऽपानश्च मे व्यानश्च मेऽसुश्च मे चित्तं म आधीतं च मे वाक् च मे मनश्च मे चक्षुश्च मे श्रोत्रं च मे दक्षश्च मे बलं च यज्ञेन कल्पन्तां समर्था भवन्तु ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्याः ससाधनान् प्राणादीन् धर्मानुष्ठानाय नियोजयन्तु ॥२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी, सर्व साधनांसह (प्राण, अपान, व्यान इत्यादी तसेच चित्त, मन, वाणी, चक्षू, श्रोत्र इत्यादी) आपले प्राण वगैरे धर्माचरणात संयुक्त करावे.