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वसु॑ चे मे वस॒तिश्च॑ मे॒ कर्म॑ च मे॒ शक्ति॑श्च॒ मेऽर्थ॑श्च म॒ऽएम॑श्च मऽइ॒त्या च॑ मे॒ गति॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥१५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वसु॑। च॒। मे॒। व॒स॒तिः। च॒। मे॒। कर्म॑। च॒। मे॒। शक्तिः॑। च॒। मे॒। अर्थः॑। च॒। मे॒। एमः॑। च॒। मे॒। इ॒त्या। च॒। मे॒। गतिः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरा (वसु) वस्तु (च) और प्रिय पदार्थ वा पियारा काम (मे) मेरी (वसतिः) जिसमें वसते हैं, वह वस्ती (च) और भृत्य (मे) मेरा (कर्म) काम (च) और करनेवाला (मे) मेरा (शक्तिः) सामर्थ्य (च) और प्रेम (मे) मेरा (अर्थः) सब पदार्थों को इकट्ठा करना (च) और इकट्ठा करनेवाला (मे) मेरा (एमः) अच्छा यत्न (च) और बुद्धि (मे) मेरी (इत्या) वह रीति जिससे व्यवहारों को जानता हूँ (च) और युक्ति तथा (मे) मेरी (गतिः) चाल (च) और उछलना आदि क्रिया ये सब पदार्थ (यज्ञेन) पुरुषार्थ के अनुष्ठान से (कल्पन्ताम्) समर्थ होवें ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो मनुष्य अपना समस्त सामर्थ्य आदि सबके हित के लिये ही करते हैं, वे ही प्रशंसायुक्त होते हैं ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(वसु) वस्तु (च) प्रियम् (मे) (वसतिः) यत्र वसन्ति सा (च) सामन्ता (मे) (कर्म) अभीप्सिततमा क्रिया (च) कर्त्ता (मे) (शक्तिः) सामर्थ्यम् (च) प्रेम (मे) (अर्थः) सकलपदार्थसञ्चयः (च) सञ्चेता (मे) (एमः) एति येन स प्रयत्नः (च) बोधः (मे) (इत्या) एमि जानामि यया रीत्या सा (च) युक्तिः (मे) (गतिः) गमनम् (च) उत्क्षेपणादि कर्म (मे) (यज्ञेन) पुरुषार्थानुष्ठानेन (कल्पन्ताम्) ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे वसु च मे वसतिश्च मे कर्म च मे शक्तिश्च मेऽर्थश्च म एमश्च म इत्या च मे गतिश्च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! ये जनाः सर्वं सामर्थ्यादिकं सर्वहितायैव कुर्वन्ति, त एव प्रशंसिता भवन्ति ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जी माणसे आपले संपूर्ण सामर्थ्य सर्वांच्या हितासाठी वापरतात तीच प्रशंसा करण्यायोग्य असतात.