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इ॒मा मे॑ऽअग्न॒ऽइष्ट॑का धे॒नवः॑ स॒न्त्वेका॑ च॒ दश॑ च॒ दश॑ च श॒तं च॑ श॒तं च॑ स॒हस्रं॑ च स॒हस्रं॑ चा॒युतं॑ चा॒युतं॑ च नि॒युतं॑ च नि॒युतं॑ च प्र॒युतं॒ चार्बु॑दं च॒ न्य᳖र्बुदं च समु॒द्रश्च॒ मध्यं॒ चान्त॑श्च परा॒र्द्धश्चै॒ता मे॑ऽअग्न॒ऽइष्ट॑का धे॒नवः॑ सन्त्व॒मु॒त्रा॒मुष्मिँ॑ल्लो॒के ॥२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒माः। मे॒। अ॒ग्ने॒। इष्ट॑काः। धेनवः॑। स॒न्तु॒। एका॑। च॒। दश॑। च॒। दश॑। च॒। श॒तम्। च॒। श॒तम्। च॒। स॒हस्र॑म्। च॒। स॒हस्र॑म्। च॒। अ॒युत॑म्। च॒। अ॒युत॑म्। च॒। नि॒युत॒मिति॑ नि॒ऽयुत॑म्। च॒। नि॒युत॒मिति॑ नि॒ऽयुत॑म्। च॒। प्र॒युत॒मिति॑ प्र॒ऽयुत॑म्। च॒। अर्बु॑दम्। च॒। न्य॑र्बुद॒मिति॒ निऽअ॑र्बुदम्। च॒। स॒मु॒द्रः। च॒। मध्य॑म्। च॒। अन्तः॑। च॒। प॒रा॒र्द्धः। च॒। ए॒ताः। मे॒। अ॒ग्ने॒। इष्ट॑काः। धे॒नवः॑। स॒न्तु॒। अ॒मुत्र॑। अमुष्मि॑न्। लो॒के ॥२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:2


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब इष्टका आदि के दृष्टान्त से गणितविद्या का उपदेश किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! जैसे (मे) मेरी (इमाः) ये (इष्टकाः) इष्ट सुख को सिद्ध करनेहारी यज्ञ की सामग्री (धेनवः) दुग्ध देनेवाली गौओं के समान (सन्तु) होवें, आप के लिये भी वैसी हों। जो (एका) एक (च) दशगुणा (दश) दश (च) और (दश) दश (च) दश गुणा (शतम्) सौ (च) और (शतम्) सौ (च) दशगुणा (सहस्रम्) हजार (च) और (सहस्रम्) हजार (च) दश गुणा (अयुतम्) दश हजार (च) और (अयुतम्) दश हजार (च) दश गुणा (नियुतम्) लाख (च) और (नियुतम्) लाख (च) दश गुणा (प्रयुतम्) दश लाख (च) इसका दश गुणा क्रोड़, इसका दश गुणा (अर्बुदम्) दशक्रोड़ इस का दश गुणा (न्यर्बुदम्) अर्ब (च) इसका दश गुणा खर्ब, इसका दश गुणा निखर्ब, इसका दश गुणा महापद्म, इसका दश गुणा शङ्कु, इसका दश गुणा (समुद्रः) समुद्र (च) इसका दश गुणा (मध्यम्) मध्य (च) इसका दश गुणा (अन्तः) अन्त और (च) इसका दश गुणा (परार्द्धः) परार्द्ध (एताः) ये (मे) मेरी (अग्ने) हे विद्वन् ! (इष्टकाः) वेदी की र्इंटें (धेनवः) गौओं के तुल्य (अमुष्मिन्) परोक्ष (लोके) देखने योग्य (अमुत्र) अगले जन्म में (सन्तु) हों, वैसा प्रयत्न कीजिये ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे अच्छे प्रकार सेवन की हुई गौ दुग्ध आदि के दान से सब को प्रसन्न करती हैं, वैसे ही वेदी में चयन की हुई ईटें वर्षा की हेतु हो के वर्षादि के द्वारा सब को सुखी करती हैं। मनुष्यों को चाहिये कि एक संख्या को दशवार गुणने से दश (१०), दश को दश बार गुणने से सौ (१००), उसको दश बार गुणने से हजार (१०००), उसको दश बार गुणने से दस हजार (१०, ०००), उसको दश वार गुणने से लाख (१, ००, ०००), उसको दश बार गुणने से दश लाख (१०, ००, ०००), इसको दश वार गुणने से क्रोड (१, ००, ००, ०००), इसको दश वार गुणने से दश क्रोड़ (१०, ००, ००, ०००), इसको दश वार गुणने से अर्ब (१, ००, ००, ००, ०००), इसको दश वार गुणने से दश अर्ब (१०, ००, ००, ००, ०००), इसको दश वार गुणने से खर्ब (१, ००, ००, ००, ००, ०००), इसको दश वार गुणने से दश खर्ब (१०, ००, ००, ००, ००, ०००), इसको दश वार गुणने से नील (१, ००, ००, ००, ००, ००, ०००), इसको दश वार गुणने से दश नील (१०, ००, ००, ००, ००, ००, ०००), इसको दश वार गुणने से पद्म (१, ००, ००, ००, ००, ००, ००, ०००), इसको दश वार गुणने से दश पद्म (१०, ००, ००, ००, ००, ००, ००, ०००), इसको दश वार गुणने से एक शङ्ख (१, ००, ००, ००, ००, ००, ००, ००, ०००), इसको दश वार गुणने से दश शङ्ख (१०, ००, ००, ००, ००, ००, ००, ००, ०००) इन संख्याओं की संज्ञा पड़ती हैं। ये इतनी संख्या तो कहीं, परन्तु अनेक चकारों के होने से और भी अङ्कगणित, बीजगणित और रेखागणित आदि की संख्याओं को यथावत् समझें। जैसे भूलोक में ये संख्या हैं, वैसे अन्य लोकों में भी हैं, जैसे यहां इन संख्याओं से गणना की और कारीगरों से चिनी हुई ईटें घर के आकार हो शीत, उष्ण, वर्षा और वायु आदि से मनुष्यादि की रक्षा कर आनन्दित करती हैं, वैसे ही अग्नि में छोड़ी हुई आहुतियाँ जल, वायु और ओषधियों के साथ मिल के सब को आनन्दित करती हैं ॥२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेष्टकादिचयनदृष्टान्तेन गणितविद्योपदिश्यते ॥

अन्वय:

(इमाः) वक्ष्यमाणाः (मे) मम (अग्ने) विद्वन् (इष्टकाः) इष्टसुखं साधिकाः (धेनवः) दुग्धदात्र्यो गाव इव (सन्तु) (एका) (च) (दश) (च) (दश) (च) (शतम्) (च) (शतम्) (च) (सहस्रम्) (च) (सहस्रम्) (च) (अयुतम्) दश सहस्राणि (च) (अयुतम्) (च) (नियुतम्) लक्षम् (च) (नियुतम्) (च) (प्रयुतम्) दश लक्षाणि प्रयुतमिति कोटेरप्युपलक्षकम् (च) (अर्बुदम्) दशकोटयः (च) (न्यर्बुदम्) अब्जम्। न्यर्बुदमिति खर्बनिखर्बमहापद्मशङ्कुसंख्यानामप्युपलक्षकम् (च) (समुद्रः) (च) (मध्यम्) (च) (अन्तः) (च) (परार्द्धः) (च) (एताः) (मे) मम (अग्ने) (इष्टकाः) (धेनवः) (सन्तु) (अमुत्र) परस्मिन् जन्मनि (अमुष्मिन्) परस्मिन् (लोके) द्रष्टव्ये ॥२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने विद्वन् ! या मे ममेमा इष्टका धेनव इव सन्तु तास्तवापि भवन्तु, या एका च दश च दश च शतं च शतं च सहस्रं च सहस्रं चायुतं चायुतं च नियुतं च नियुतं च प्रयुतं चार्बुदं च न्यर्बुदं च समुद्रश्च मध्यं चान्तश्च परार्द्धश्चैता मे अग्न इष्टका धेनव इवामुत्रामुष्मिंल्लोकेऽस्मिन् परजन्मनि वा सन्तु ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - यथा सुसेविता गावो दुग्धादिदानेन सर्वान् सन्तोषयन्ति, तथैव वेद्यां सञ्चिता इष्टका वृष्टिहेतुका भूत्वा वृष्ट्यादिद्वारा सर्वानानन्दयन्ति। मनुष्यैरेका संख्या दशवारं गुणिता सती दशसंज्ञां लभते, दश दशवारं संख्याताः शतम्, शतं दशवारं संख्यातं सहस्रम्, सहस्रं दशवारं संख्यातमयुतम्, अयुतं दशवारं संख्यातं नियुतम्, नियुतं दशवारं संख्यातं प्रयुतम्, प्रयुतं दशवारं संख्यातं कोटिः, कोटिर्दशवारं संख्याता दश कोट्यः, ता दशवारं संख्याताः खर्बः, खर्बो दशवारं संख्यातो निखर्बः, निखर्बो दशवारं संख्यातो महापद्मः, महापद्मो दशवारं संख्यातः शुङ्कुः, शङ्कुदशवारं संख्यातः समुद्रः, समुद्रो दशवारं संख्यातो मध्यम्, मध्यं दशवारं संख्यातमन्तरन्तो दशवारं संख्यातः परार्द्धः। एताः संख्या उक्ता उक्तैरनेकैश्चकारैरन्या अपि अङ्कबीजरेखाप्रभृतयो यथावद् विज्ञेया। यथास्मिंल्लोक इमाः संख्या सन्ति, तथान्येष्वपि लोकेषु वर्त्तन्ते, यथात्रैतत्संख्याभिः संख्याता इष्टका सुशिल्पिभिश्चिता गृहाकारा भूत्वा शीतोष्णवर्षावाय्वादिभ्यो मनुष्यान् रक्षित्वाऽऽनन्दयन्ति, तथैवाहुतयो जलवाय्वोषधीभिः संहत्य सर्वान् प्राणिन आनन्दयन्ति ॥२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याप्रमाणे उत्तम गाई आपल्या दुधाने सर्वांना प्रसन्न करतात त्याप्रमाणे यज्ञवेदीत रचलेल्या विटा पावसाचे निमित्त बनून सर्वांना सुखी करतात. माणसाने हे जाणावे की एक (१) या संख्येला दहाने गुणल्यास दहा (१०) व दहाला दहाने गुणल्यास (१००) शंभर व त्याला दहाने गुणल्यास हजार (१०००) , त्याला दहाने गुणल्यास दहा हजार (१००००) , त्याला दहाने गुणल्यास एक लाख (१०००००) त्याला दहाने गुणल्यास दहा लाख (१००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास एक कोटी (१००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास अर्व (१०००००००००) त्याला दहाने गुणल्यास दहा अर्व (१००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास खर्व (१०००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास दहा खर्व (१००००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास नील (१०००००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास दहा नील (१००००००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास पद्म (१०००००००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास एक शंख (१०००००००००००००००००) , त्याला दहाने गुणल्यास (१००००००००००००००००००) अशा या संख्या होत. या एवढ्या संख्यांना अनेक चकारांमुळे अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित इत्यादी संख्या यथायोग्य पद्धतीने समजून घ्याव्यात. या भूलोकावर जशा संख्या आहेत तशा अन्य गोलांवरही आहेत. या संख्यांची गणना करूनच चांगले कारागीर विटांनी घरे बांधतात व त्यामुळे थंडी, गरमी, पाऊस व वारा यांच्यापासून माणसांचे रक्षण होते व ते आनंदी बनतात. तसे अग्नीत टाकलेल्या आहुती जल, वायू, वृक्ष यांच्यात मिसळून सर्वांना आनंदी करतात.