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प्रा॒ण॒दाऽअ॑पान॒दा व्या॑न॒दा व॑र्चो॒दा व॑रिवो॒दाः। अन्याँ॒स्ते॑ऽअ॒स्मत्त॑पन्तु हे॒तयः॑ पाव॒कोऽअ॒स्मभ्य॑ꣳ शि॒वो भ॑व ॥१५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रा॒ण॒दा इति॑ प्राण॒ऽदाः। अ॒पा॒न॒दा इत्य॑पान॒ऽदाः। व्या॒न॒दा इति॑ व्यान॒ऽदाः। व॒र्चो॒दा इति॑ वर्चः॒ऽदाः। व॒रि॒वो॒दा इति॑ वरिवः॒ऽदाः। अ॒न्यान्। ते॒। अ॒स्मत्। त॒प॒न्तु॒। हे॒तयः॑। पा॒व॒कः। अ॒स्मभ्य॑म्। शि॒वः। भ॒व॒ ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वान् और राजा कैसे हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् राजन् ! (ते) आपकी जो उन्नति वा शस्त्रादि (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (प्राणदाः) जीवन तथा बल को देने वा (अपानदाः) दुःख दूर करने के साधन को देने वा (व्यानदाः) व्याप्ति और विज्ञान को देने (वर्चोदाः) सब विद्याओं के पढ़ने का हेतु को देने और (वरिवोदाः) सत्य धर्म्म और विद्वानों की सेवा को व्याप्त करानेवाली (हेतयः) वज्रादि शस्त्रों की उन्नतियाँ (अस्मत्) हमसे (अन्यान्) अन्य दुष्ट शत्रुओं को (तपन्तु) दुःखी करें, उनके सहित (पावकः) शुद्धि का प्रचार करते हुए आप हम लोगों के लिये (शिवः) मङ्गलकारी (भव) हूजिये ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - वही राजा है जो न्याय को बढ़ानेवाला हो, और वही विद्वान् है जो विद्या से न्याय को जाननेवाला हो, और वह राजा नहीं जो कि प्रजा को पीड़ा दे, और वह विद्वान् भी नहीं जो दूसरों को विद्वान् न करे, और वे प्रजाजन भी नहीं जो नीतियुक्त राजा की सेवा न करें ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वद्राजानौ कीदृशौ स्यातामित्याह ॥

अन्वय:

(प्राणदाः) याः प्राणं जीवनं बलं च ददति ताः (अपानदाः) या अपानं दुःखदूरीकरणसाधनं प्रयच्छन्ति ताः (व्यानदाः) या व्याप्तिविज्ञानं ददति (वर्चोदाः) सकलविद्याध्ययनप्रदाः (वरिवोदाः) सत्यधर्मविद्वत्सेवाप्रापिकाः (अन्यान्) (ते) तव (अस्मत्) (तपन्तु) (हेतयः) वज्रवद्वर्त्तमाना शस्त्रास्त्रोन्नतयः (पावकः) शुद्धिप्रचारकः (अस्मभ्यम्) (शिवः) (भव) ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् राजन् ! ते तव या अस्मभ्यं प्राणदा अपानदा व्यानदा वर्चोदा वरिवोदा हेतयो भूत्वाऽस्मदन्यांस्तपन्तु ताभिः पावकः संस्त्वमस्मभ्यं शिवो भव ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - स एव राजा यो न्यायस्य वर्द्धकः स्यात्, स एव विद्वान् यो विद्यया न्यायस्य विज्ञापको भवेत्, न स राजा यः प्रजा पीडयेत्, न स विद्वान् योऽन्यान् विदुषो न कुर्यात्, न ताः प्रजा या नीतिज्ञं न सेवेरन् ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो न्यायी असतो तोच खरा राजा होय. जो विद्या जाणून घेऊन न्यायनिवाडा करतो तोच खरा विद्वान होय. जो प्रजेला त्रास देतो तो राजा नव्हे व जो इतरांना विद्वान करीत नाही तो विद्वान नव्हे आणि जे नीतिमान राजाला सहकार्य करत नाहीत ते प्रजानन नव्हेत.