वांछित मन्त्र चुनें

पा॒व॒कया॒ यश्चि॒तय॑न्त्या कृ॒पा क्षाम॑न् रुरु॒चऽउ॒षसो॒ न भा॒नुना॑। तूर्व॒न् न याम॒न्नेत॑शस्य॒ नू रण॒ऽआ यो घृ॒णे न त॑तृषा॒णोऽअ॒जरः॑ ॥१० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पा॒व॒कया॑। यः। चि॒तय॑न्त्या। कृ॒पा। क्षाम॑न्। रु॒रु॒चे। उ॒षसः॑। न। भा॒नुना॑। तूर्व॑न्। न। याम॑न्। एत॑शस्य। नु। रणे॑। आ। यः। घृ॒णे। न। त॒तृ॒षा॒णः। अ॒जरः॑ ॥१० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:10


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सेनापति को कैसा होना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (पावकया) पवित्र करने और (चितयन्त्या) चेतनता करानेहारी (कृपा) शक्ति के साथ वर्त्तमान सेनापति जैसे (भानुना) दीप्ति से (उषसः) प्रभात समय शोभित होते हैं (न) वैसे (क्षामन्) राज्यभूमि में (रुरुचे) शोभित होता वा (यः) जो (यामन्) मार्ग वा प्रहर में जैसे (एतशस्य) घोड़े के बलों को (नु) शीघ्र (तूर्वन्) मारता है (न) वैसे (घृणे) प्रदीप्त (रणे) युद्ध में (ततृषाणः) प्यासे के (न) समान (अजरः) अजर अजेय ज्वान निर्भय (आ) अच्छे प्रकार होता वह राज्य करने को योग्य होता है ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सूर्य और चन्द्रमा अपनी दीप्ति से शोभित होते हैं, वैसे ही सती स्त्री के साथ उत्तम पति और उत्तम सेना से सेनापति अच्छे प्रकार प्रकाशित होता है ॥१० ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सेनापतिना कथम्भवितव्यमित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(पावकया) पवित्रकारिकया (यः) (चितयन्त्या) चेतनतायाः कर्त्र्या (कृपा) सामर्थ्येन (क्षामन्) क्षामनि राज्यभूमौ। क्षामेति पृथिवीनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१) (रुरुचे) रोचते (उषसः) प्रभाताः (न) इव (भानुना) दीप्त्या (तूर्वन्) हिंसन् (न) इव (यामन्) यामनि मार्गे प्रहरे वा (एतशस्य) अश्वस्य सम्बन्धीनि बलानि। एतश इत्यश्वनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१४) (नु) क्षिप्रम्। अत्र ऋचि तुनु० [अष्टा०६.३.१३३] इति दीर्घः (रणे) (आ) (यः) (घृणे) प्रदीप्ते (न) इव (ततृषाणः) पिपासितः (अजरः) जरारहितः ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यः पावकया चितयन्त्या कृपा सह वर्त्तमानः सेनापतिर्भानुनोषसो न क्षामन् रुरुचे, यो वा यामन्नेतशस्य नु तूर्वन् न घृणे रणे ततृषाणो नाजर आरुरुचे, स राज्यङ्कर्तुमर्हति ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सूर्यश्चन्द्रश्च दीप्त्या, सुशोभेते तथैवोत्तमया स्त्रिया सुपतिः सेनया सेनापतिश्च सुप्रकाशते ॥१० ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे सूर्य व चंद्र आपल्या तेजाने शोभिवंत दिसतात, तसेच चांगली स्त्री उत्तम पतीबरोबर सुशोभित होते व सेनापती उत्तम सेनेसह सुशोभित होतो.