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मा न॑स्तो॒के तन॑ये॒ मा न॒ऽआयु॑षि॒ मा नो॒ गोषु॒ मा नो॒ऽअश्वे॑षु रीरिषः। मा नो॑ वी॒रान् रु॑द्र भा॒मिनो॑ वधीर्ह॒विष्म॑न्तः॒ सद॒मित् त्वा॑ हवामहे ॥१६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। नः॒। तो॒के। तन॑ये। मा। नः॒। आयु॑षि। मा। नः॒। गोषु॑। मा। नः॒। अश्वे॑षु। री॒रिष॒ इति॑ रीरिषः। मा। नः॒। वी॒रान्। रु॒द्र॒। भा॒मिनः॑। व॒धीः॒। ह॒विष्म॑न्तः। सद॑म्। इत्। त्वा॒। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥१६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:16


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (रुद्र) सेनापति ! तू (नः) हमारे (तोके) तत्काल उत्पन्न हुए सन्तान को (मा) मत (नः) हमारे (तनये) पाँच वर्ष से ऊपर अवस्था के बालक को (मा) मत (नः) हमारी (आयुषि) अवस्था को (मा) मत (नः) हमारे (गोषु) गौ, भेड़, बकरी आदि को (मा) मत (नः) हमारे और (अश्वेषु) घोड़े, हाथी और ऊँट आदि को (मा) मत (रीरिषः) मार और (नः) हमारे (भामिनः) क्रोध को प्राप्त हुए (वीरान्) शूरवीरों को (मा) मत (वधीः) मार। इस से (हविष्मन्तः) बहुत से देने-लेने योग्य वस्तुओं से युक्त हम लोग (सदम्) न्याय में स्थिर (त्वा) तुझ को (इत्) ही (हवामहे) स्वीकार करते हैं ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषों को चाहिये कि अपने वा प्रजा के बालकों, कुमार और गौ, घोड़े आदि; वीर, उपकारी जीवों की कभी हत्या न करें और बाल्यावस्था में विवाह कर व्यभिचार से अवस्था की हानि भी न करें। गौ आदि पशु दूध आदि पदार्थों को देने से सब का उपकार करते हैं, उससे उन की सदैव वृद्धि करें ॥१६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तदेवाह ॥

अन्वय:

(मा) (नः) अस्माकम् (तोके) सद्यो जातेऽपत्ये (तनये) पञ्चमाद् वर्षादूर्ध्वं वयः प्राप्ते (मा) (नः) अस्माकम् (आयुषि) वयसि (मा) (नः) अस्माकम् (गोषु) गोजाव्यादिषु (मा) (नः) (अश्वेषु) तुरङ्गहस्त्युष्ट्रादिषु (रीरिषः) हिंसको भवेः (मा) (नः) (वीरान्) शूरान् (रुद्र) (भामिनः) क्रुद्धान् (वधीः) (हविष्मन्तः) बहूनि हवींषि दातुमादातुं योग्यानि वस्तूनि विद्यन्ते येषां ते (सदम्) यो न्याये सीदति तम् (इत्) एव (त्वा) त्वाम् (हवामहे) स्वीकुर्महे ॥१६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे रुद्र सेनेश ! त्वं नस्तोके मा रीरिषो नस्तनये मा रीरिषो न आयुषि मा रीरिषो नो गोषु मा रीरिषो नोऽश्वेषु मा रीरिषः नो भामिनो वीरान् मा वधीरतो हविष्मन्तो वयं सदं त्वेद्धवामहे ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषैः कस्यापि प्रजास्थस्य वा बालकुमारगवाश्वादिवीरहत्या नैव कार्या, न बाल्यावस्थायां विवाहेन व्यभिचारेण चायुर्हिंसनीयम्। गवादिपशूनां दुग्धादिप्रदानेन सर्वोपकारकत्वात् सदैवैतेषां वृद्धिः कार्या ॥१६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांनी स्वतःच्या किंवा प्रजेच्या बालकांची हत्या करू नये. कुमार, गाई, घोडे वगैरे तसेच वीर पुरुष, उपकार करणारे यांचीही हत्या करू नये. बाल्यावस्थेत विवाह करून व व्यभिचाराने आयुष्याचे नुकसान करू नये. गाई वगैरे पशू, दूध इत्यादी पदार्थ देऊन सर्वांवर उपकार करतात. त्यामुळे त्यांची सदैव वृद्धी करावी.