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र॒श्मिना॑ स॒त्याय॑ स॒त्यं जि॑न्व॒ प्रेति॑ना॒ ध॒र्म॑णा॒ धर्मं॑ जि॒न्वान्वि॑त्या दि॒वा दिवं॑ जिन्व स॒न्धिना॒न्तरि॑क्षेणा॒न्तरि॑क्षं जिन्व प्रति॒धिना॑ पृथि॒व्या पृ॑थि॒वीं जि॑न्व विष्ट॒म्भेन॒ वृष्ट्या॒ वृष्टिं॑ जिन्व प्र॒वयाऽह्नाह॑र्जिन्वानु॒या रात्र्या॒ रात्रीं॑ जिन्वो॒शिजा॒ वसु॑भ्यो॒ वसू॑ञ्जिन्व प्रके॒तेना॑दि॒त्येभ्य॑ऽआदि॒त्याञ्जि॑न्व॒ ॥६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

र॒श्मिना॑। स॒त्याय॑। स॒त्यम्। जि॒न्व॒। प्रेति॒नेति॒ प्रऽइति॑ना। धर्म॑णा। धर्म॑म्। जि॒न्व॒। अन्वि॒त्येत्यनु॑ऽइत्या। दि॒वा। दिव॑म्। जि॒न्व॒। स॒न्धिनेति॑ स॒म्ऽधिना॑। अ॒न्तरि॑क्षेण। अ॒न्तरि॑क्षम्। जि॒न्व॒। प्र॒ति॒धिनेति॑ प्रति॒ऽधिना॑। पृ॒थि॒व्या। पृ॒थि॒वीम्। जि॒न्व॒। वि॒ष्ट॒म्भेन॑। वृष्ट्या॑। वृष्टि॑म्। जि॒न्व॒। प्र॒वयेति॑ प्र॒ऽवया॑। अह्ना॑। अहः॑। जि॒न्व॒। अ॒नु॒येत्य॑नु॒ऽया। रात्र्या॑। रात्री॑म्। जि॒न्व॒। उ॒शिजा॑। वसु॑भ्य॒ इति॒ वसु॑ऽभ्यः। वसू॑न्। जि॒न्व॒। प्र॒के॒तेनेति॑ प्रऽके॒तेन॑। आ॒दि॒त्येभ्यः॑। आ॒दि॒त्यान्। जि॒न्व॒ ॥६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:6


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वानों को पदार्थविद्या के जानने का उपाय करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् पुरुष ! तू (रश्मिना) किरणों से (सत्याय) वर्त्तमान में हुए सूर्य्य के तुल्य नित्य सुख और स्थूल पदार्थों के लिये (सत्यम्) अव्यभिचारी कर्म को (जिन्व) प्राप्त हो। (प्रेतिना) उत्तम ज्ञानयुक्त (धर्मणा) न्याय के आचरण से (धर्मम्) धर्म को (जिन्व) जान। (अन्वित्या) खोज के हेतु (दिवा) धर्म के प्रकाश से (दिवम्) सत्य के प्रकाश को (जिन्व) प्राप्त हो। (सन्धिना) सन्धिरूप (अन्तरिक्षेण) आकाश से (अन्तरिक्षम्) अवकाश को (जिन्व) जान। (पृथिव्या) भूगर्भविद्या के (प्रतिधिना) सम्बन्ध से (पृथिवीम्) भूमि को (जिन्व) जान। (विष्टम्भेन) शरीर धारण के हेतु आहार के रस से तथा (वृष्ट्या) वर्षा की विद्या से (वृष्टिम्) वर्षा को (जिन्व) जान। (प्रवया) कान्तियुक्त (अह्ना) प्रकाश की विद्या से (अहः) दिन को (जिन्व) जान। (अनुया) प्रकाश के पीछे चलनेवाली (रात्र्या) रात्रि की विद्या से (रात्रीम्) रात्रि को (जिन्व) जान। (उशिजा) कामनाओं से (वसुभ्यः) अग्नि आदि आठ वसुओं की विद्या से (वसून्) उन अग्नि आदि वसुओं को (जिन्व) जान और (प्रकेतेन) उत्तम विज्ञान से (आदित्येभ्यः) बारह महीनों की विद्या से (आदित्यान्) बारह महीनों को (जिन्व) तत्त्वस्वरूप से जान ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों को चाहिये कि जैसे पदार्थों की परीक्षा से अपने आप पदार्थविद्या को जानें, वैसे ही दूसरों के लिये भी उपदेश करें ॥६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्भिः पदार्थविद्या ज्ञातव्येत्याह ॥

अन्वय:

(रश्मिना) किरणसमूहेन (सत्याय) सति वर्त्तमाने भवाय स्थूलाय पदार्थसमूहाय (सत्यम्) अव्यभिचारि कर्म (जिन्व) प्राप्नुहि (प्रेतिना) प्रकृष्टविज्ञानयुक्तेन (धर्मणा) न्यायाचरणेन (धर्मम्) (जिन्व) जानीहि (अन्वित्या) अन्वेषणेन (दिवा) धर्मप्रकाशेन (दिवम्) सत्यप्रकाशम् (जिन्व) (सन्धिना) सन्धानेन (अन्तरिक्षेण) आकाशेन (अन्तरिक्षम्) अवकाशम् (जिन्व) जानीहि (प्रतिधिना) प्रतिदधाति यस्मिंस्तेन (पृथिव्या) भूगर्भविद्यया (पृथिवीम्) भूमिम् (जिन्व) जानीहि (विष्टम्भेन) विशेषेण स्तभ्नोति शरीरं येन तेन (वृष्ट्या) वृष्टिविद्यया (वृष्टिम्) (जिन्व) जानीहि (प्रवया) कान्तिमता (अह्ना) अहर्विद्यया (अहः) दिनम् (जिन्व) जानीहि (अनुया) यानुयाति तया (रात्र्या) रात्रिविद्यया (रात्रीम्) रजनीम् (जिन्व) (उशिजा) कामयमानेन (वसुभ्यः) अग्न्यादिभ्यः (वसून्) अग्न्यादीन् (जिन्व) (प्रकेतेन) प्रकृष्टेन विज्ञानेन (आदित्येभ्यः) मासेभ्यः (आदित्यान्) द्वादशमासान् (जिन्व) विजानीहि [अयं मन्त्रं शत०८.५.३.३ व्याख्यातः] ॥६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वंस्त्वं रश्मिना सत्याय सूर्य इव नित्यसुखाय सत्यं जिन्व। प्रेतिना धर्मणा धर्मं जिन्व। अन्वित्या दिवा दिवं जिन्व। सन्धिनान्तरिक्षेणान्तरिक्षं जिन्व। पृथिव्या प्रतिधिना पृथिवीं जिन्व। विष्टम्भेन वृष्ट्या वृष्टिं जिन्व। प्रवयाऽह्नाहर्जिन्व। अनुया रात्र्या रात्रीं जिन्व। उशिजा वसुभ्यो वसून् जिन्व। प्रकेतेनादित्येभ्य आदित्यान् जिन्व ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिर्यथा पदार्थपरीक्षणेन पदार्थविद्या विदिता कार्या तथैवान्येभ्य उपदेष्टव्या ॥६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वानांनी पदार्थांची परीक्षा करून स्वतः पदार्थविद्या जाणावी व इतरांनाही शिकवावी.