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अग्ने॒ तम॒द्याश्वं॒ न स्तोमैः॒ क्रतुं॒ न भ॒द्रꣳ हृ॑दि॒स्पृश॑म्। ऋ॒ध्यामा॑ त॒ऽओहैः॑ ॥४४ ॥

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पद पाठ

अग्ने॑। तम्। अ॒द्य। अश्व॑म्। न। स्तोमैः॑। क्रतु॑म्। न। भ॒द्रम्। हृ॒दि॒स्पृश॒मिति॑ हृदि॒ऽस्पृश॑म्। ऋ॒ध्याम॑। ते॒ ओहैः॑ ॥४४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:44


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अध्यापक जन ! हम लोग (ते) आप से (ओहैः) विद्या का सुख देनेवाले (स्तोमैः) विद्या की स्तुतिरूप वेद के भागों से (अद्य) आज (अश्वम्) घोड़े के (न) समान (भद्रम्) कल्याणकारक (क्रतुम्) बुद्धि के (न) समान (तम्) उस (हृदिस्पृशम्) आत्मा के साथ सम्बन्ध करनेवाले विद्याबोध को प्राप्त हो के निरन्तर (ऋध्याम) वृद्धि को प्राप्त हों ॥४४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में दो उपमालङ्कार हैं। अध्येता लोगों को चाहिये कि जैसे अच्छे शिक्षित घोड़े से अभीष्ट स्थान में शीघ्र पहुँच जाते हैं, जैसे विद्वान् लोग सब शास्त्रों के बोध से युक्त कल्याण करने हारी बुद्धि से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष फलों को प्राप्त होते हैं, वैसे उन अध्यापकों से पूर्ण विद्या पढ़ प्रशंसित बुद्धि को पा के आप उन्नति को प्राप्त हों तथा वेद के पढ़ाने और उपदेश से अन्य सब मनुष्यों की भी उन्नति करें ॥४४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृशः स्यादित्याह ॥

अन्वय:

(अग्ने) अध्यापक ! (तम्) विद्याबोधम् (अद्य) अस्मिन् वर्त्तमाने समये (अश्वम्) सुशिक्षितं तुरङ्गम् (न) इव (स्तोमैः) विद्यास्तुतिविशेषैर्वेदभागैः (क्रतुम्) प्रज्ञानम् (न) इव (भद्रम्) कल्याणकरम् (हृदिस्पृशम्) यो हृद्यात्मनि स्पृशति तम् (ऋध्याम) वर्धेमहि। अत्र अन्येषामपि० [अ०६.३.१३७] इति दीर्घः (ते) तव सकाशात् (ओहैः) विद्यासुखप्रापकैः ॥४४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्नेऽध्यापक ! वयं ते तव सकाशादोहैः स्तोमैरद्याश्वं न भद्रं क्रतुं न तं हृदिस्पृशं प्राप्य सततमृध्याम ॥४४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारौ। अध्येतारो यथा सुशिक्षितेनाश्वेन सद्योऽभीष्टं स्थानं गच्छन्ति, यथा विद्वांसः सर्वशास्त्रबोधसंपन्नया कल्याणकर्त्र्या प्रज्ञया धर्मार्थकाममोक्षान् प्राप्नुवन्ति तथा तेभ्योऽध्यापकेभ्यो विद्यापारं गत्वा प्रशस्तां प्रज्ञां प्राप्य स्वयं वर्धेरन्, अन्यांश्च वेदाध्यापनोपदेशाभ्यामेधयेयुः ॥४४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात दोन उपमालंकार आहेत. जसे प्रशिक्षित घोडे योग्य ठिकाणी वेगाने पोहोचतात व जसे विद्वान लोक सर्व शास्त्रांचा बोध करून घेऊन कल्याणकारी बुद्धी ठेवून धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्त करतात तसे विद्यार्थ्यांनी अध्यापकांकडून पूर्ण विद्या प्राप्त करून उत्तम बुद्धीने स्वतः उन्नती करून घ्यावी व वेदांचा उपदेश करून सर्व माणसांनाही उन्नत करावे.