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त्वाम॑ग्ने॒ पुष्क॑रा॒दध्यथ॑र्वा॒ निर॑मन्थत। मू॒र्ध्नो विश्व॑स्य वा॒घतः॑ ॥२२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। पुष्क॑रात्। अधि॑। अथ॑र्वा। निः। अ॒म॒न्थ॒त॒। मू॒र्ध्नः। विश्व॑स्य। वा॒घतः॑ ॥२२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:22


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! जैसे (अथर्वा) रक्षक (वाघतः) अच्छी शिक्षित वाणी से अविद्या का नाश करने हारा बुद्धिमान् विद्वान् पुरुष (पुष्करात्) अन्तरिक्ष के (अधि) बीच तथा (मूर्ध्नः) शिर के तुल्य वर्त्तमान (विश्वस्य) सम्पूर्ण जगत् के बीच अग्नि को (निरमन्थत) निरन्तर मन्थन करके ग्रहण करे, वैसे ही (त्वाम्) तुझ को मैं बोध कराता हूँ ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों के समान आकाश तथा पृथिवी के सकाश से बिजुली का ग्रहण कर आश्चर्य रूप कर्मों को सिद्ध करें ॥२२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृशः स्यादित्याह ॥

अन्वय:

(त्वाम्) (अग्ने) विद्वन् ! (पुष्करात्) अन्तरिक्षात्। पुष्करमित्यन्तरिक्षनाम० ॥ (निघं०१.३) (अधि) (अथर्वा) अहिंसकः (निः) नितराम् (अमन्थत) मथित्वा गृह्णीयात् (मूर्ध्नः) शिरोवद्वर्त्तमानस्य (विश्वस्य) समग्रस्य जगतो मध्ये (वाघतः) सुशिक्षिताभिर्वाग्भिरविद्या हन्यते येन स मेधावी। वाघत इति मेधाविनामसु पठितम् ॥ (निघं० ३.२५) ॥२२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! यथाऽथर्वा वाघतो विद्वान् पुष्करादधि मूर्ध्नो विश्वस्य च मध्येऽग्निं विद्युतं निरमन्थत, तथैव त्वां बोधयामि ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्विद्वदनुकरणेनाकाशात् पृथिव्याश्च विद्युतं संगृह्याश्चर्य्याणि कर्माणि साधनीयानि ॥२२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी विद्वानांप्रमाणे आकाश व पृथ्वीच्या साह्याने विद्युतचा स्वीकार करून आश्चर्यजनक कार्ये करावीत.