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अ॒ग्निर्ज्योति॑षा॒ ज्योति॑ष्मान् रु॒क्मो वर्च॑सा॒ वर्च॑स्वान्। स॒ह॒स्र॒दाऽ अ॑सि स॒हस्रा॑य त्वा ॥४० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निः। ज्योति॑षा। ज्योति॑ष्मान्। रु॒क्मः। वर्च॑सा। वर्च॑स्वान्। स॒ह॒स्र॒दा इति॑ सहस्र॒ऽदाः। अ॒सि॒। स॒हस्रा॑य। त्वा॒ ॥४० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:40


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उक्त विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् पुरुष ! जो आप (ज्योतिषा) विद्या के प्रकाश से (अग्निः) अग्नि के तुल्य (ज्योतिष्मान्) प्रशंसित प्रकाशयुक्त (वर्चसा) अपने तेज से (वर्चस्वान्) ज्ञान देनेवाले और (रुक्मः) जैसे सुवर्ण सुख देवे, वैसे (सहस्रदाः) असंख्य सुख के देनेवाले (असि) हैं, उन (त्वा) आपका (सहस्राय) अतुल विज्ञान की प्राप्ति के लिये हम लोग सत्कार करें ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोमालङ्कार है। मनुष्यों को योग्य है कि जो अग्नि और सूर्य्य के समान विद्या से प्रकाशमान विद्वान् पुरुष हों, उनसे विद्या पढ़ के पूर्ण विद्या के ग्राहक होवें ॥४० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स एव विषय उपदिश्यते ॥

अन्वय:

(अग्निः) पावकः (ज्योतिषा) दीप्त्या (ज्योतिष्मान्) प्रशस्तप्रकाशयुक्तः (रुक्मः) सुवर्णमिव (वर्चसा) विद्यादीप्त्या (वर्चस्वान्) विद्याविज्ञानवान् (सहस्रदाः) सहस्रमसंख्यं सुखं ददातीति (असि) (सहस्राय) अतुलविज्ञानाय (त्वा) त्वाम्। [अयं मन्त्रः शत०७.५.२.१२ व्याख्यातः] ॥४० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यस्त्वं ज्योतिषा ज्योतिष्मानग्निरिव वर्चसा वर्चस्वान् रुक्म इव सहस्रदा असि, तं त्वा सहस्राय वयं सत्कुर्याम ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्योऽग्निसूर्यवद् विद्यया प्रकाशमानो विद्वान् भवेत्, तस्मादधीत्य पुष्कला विद्याः स्वीकार्याः ॥४० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे अग्नी व सूर्याप्रमाणे विद्येने तेजस्वी व विद्वान बनलेले पुरुष असतील त्यांच्याकडून माणसांनी पूर्ण विद्या प्राप्त करावी.