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या वो॑ देवाः॒ सूर्य्ये॒ रुचो॒ गोष्वश्वे॑षु॒ या रुचः॑। इन्द्रा॑ग्नी॒ ताभिः॒ सर्वा॑भी॒ रुचं॑ नो धत्त बृहस्पते ॥२३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

याः। वः॒। दे॒वाः॒। सूर्ये॑। रुचः॑। गोषु॑। अश्वे॑षु। याः। रुचः॑। इन्द्रा॑ग्नी॒ऽइतीन्द्रा॑ग्नी। ताभिः॑। सर्वा॑भिः। रुच॑म्। नः॒। ध॒त्त॒। बृ॒ह॒स्प॒ते॒ ॥२३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:23


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब स्त्री-पुरुषों को विज्ञान की सिद्धि कैसे करनी चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवाः) विद्वानो ! तुम सब लोग (याः) जो (वः) तुम्हारी (सूर्य्ये) सूर्य्य में (रुचः) रुचि और (याः) जो (गोषु) गौओं और (अश्वेषु) घोड़ों आदि में (रुचः) प्रीतियों के समान प्रीति है, (ताभिः) उन (सर्वाभिः) सब रुचियों से (नः) हमारे बीच (रुचम्) कामना को (इन्द्राग्नी) बिजुली और सूर्य्यवत् अध्यापक और उपदेशक जैसे धारण करे, वैसे (धत्त) धारण करो। हे (बृहस्पते) पक्षपात छोड़ के परीक्षा करानेहारे पूर्णविद्या युक्त आप (नः) हमारी परीक्षा कीजिये ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - जब तक मनुष्य लोगों की विद्वानों के सङ्ग ईश्वर उस की रचना में रुचि और परीक्षा नहीं होती, तब तक विज्ञान कभी नहीं बढ़ सकता ॥२३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ स्त्रीपुरुषैः कथं विज्ञानं संपाद्यमित्याह ॥

अन्वय:

(याः) (वः) युष्माकम् (देवाः) विद्वांसः (सूर्य्ये) सवितरि (रुचः) रुचयः (गोषु) धेनुषु (अश्वेषु) गवादिषु (याः) (रुचः) प्रीतयः (इन्द्राग्नी) विद्युत्सूर्य्यवदध्यापकोपदेशकौ (ताभिः) (सर्वाभिः) (रुचम्) कामनाम् (नः) अस्माकं मध्ये (धत्त) (बृहस्पते) बृहतां विदुषां पालक। [अयं मन्त्रः शत०७.४.२.२१ व्याख्यातः] ॥२३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे देवाः ! यूयं या वः सूर्ये रुचो या गोष्वश्वेषु रुचश्चेव रुचः सन्ति, ताभिः सर्वाभी रुग्भिर्नो रुचमिन्द्राग्नी इव धत्त। हे बृहस्पते परीक्षक ! भवानस्माकं परीक्षां कुरु ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - यावन्मनुष्याणां विद्वत्सङ्ग ईश्वरेऽस्य सृष्टौ च रुचिः परीक्षा च न जायते, तावद्विज्ञानं न वर्द्धते ॥२३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जोपर्यंत माणसांना विद्वानांच्या संगतीने ईश्वर व त्याची रचना यांच्यामध्ये आवड निर्माण होत नाही व त्यांची विद्वानांकडून परीक्षा होत नाही तोपर्यंत विज्ञानाची वृद्धी कधीच होत नाही.