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भूर॑सि॒ भूमि॑र॒स्यदि॑तिरसि वि॒श्वधा॑या॒ विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य ध॒र्त्री। पृ॒थि॒वीं य॑च्छ पृथि॒वीं दृ॑ꣳह पृथि॒वीं मा हि॑ꣳसीः ॥१८ ॥

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पद पाठ

भूः। अ॒सि॒। भूमिः॑। अ॒सि॒। अदि॑तिः। अ॒सि॒। वि॒श्वधा॑या॒ इति॑ वि॒श्वऽधायाः॑। विश्व॑स्य। भुव॑नस्य। ध॒र्त्री। पृ॒थि॒वीम्। य॒च्छ॒। पृ॒थि॒वीम्। दृ॒ꣳह॒। पृ॒थि॒वीम्। मा। हि॒ꣳसीः॒ ॥१८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:18


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राणी कैसी हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राणी ! जिससे तू (भूः) भूमि के समान (असि) है, इस कारण (पृथिवीम्) पृथिवी को (यच्छ) निरन्तर ग्रहण कर। जिसलिये तू (विश्वधायाः) सब गृहाश्रम के और राजसम्बन्धी व्यवहारों और (विश्वस्य) सब (भुवनस्य) राज्य को (धर्त्री) धारण करनेहारी (भूमिः) पृथिवी के समान (असि) है, इसलिये (पृथिवीम्) पृथिवी को (दृंह) बढ़ा और जिस कारण तू (अदितिः) अखण्ड ऐश्वर्य्यवाले आकाश के समान क्षोभरहित (असि) है, इसलिये (पृथिवीम्) भूमि को (मा) मत (हिंसीः) बिगाड़ ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - जो राजकुल की स्त्री पृथिवी आदि के समान धीरज आदि गुणों से युक्त हो तो वे ही राज्य करने के योग्य होती हैं ॥१८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा कीदृशी भवेदित्याह ॥

अन्वय:

(भूः) भवतीति भूः (असि) (भूमिः) पृथिवीवत् (असि) (अदितिः) अखण्डितैश्वर्य्यमन्तरिक्षमिवाक्षुब्धा (असि) (विश्वधायाः) या विश्वं सर्वं गृह्णाति गृहाश्रमी राजव्यवहारं दधाति सा (विश्वस्य) सर्वस्य (भुवनस्य) भवन्ति भूतानि यस्मिन् राज्ये तस्य (धर्त्री) धारिका (पृथिवीम्) (यच्छ) निगृहाण (पृथिवीम्) (दृंह) वर्धय (पृथिवीम्) (मा) (हिंसीः) हिंस्याः। [अयं मन्त्रः शत०७.४.२.७ व्याख्यातः] ॥१८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजपत्नि ! यतस्त्वं भूरिवासि, तस्मात् पृथिवीं यच्छ। यतस्त्वं विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री भूमिरिवासि, तस्मात् पृथिवीं दृंह। यतस्त्वमदितिरिवासि, तस्मात् पृथिवीं मा हिंसीः ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - याः राजकुलस्त्रियः पृथिव्यादिवद् धैर्यादिगुणयुक्ताः सन्ति, ता एव राज्यं कर्त्तुमर्हन्ति ॥१८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या राजकुलातील स्त्रिया पृथ्वी इत्यादीप्रमाणे धैर्यादी गुणांनी युक्त असतात त्याच राज्य करण्यायोग्य असतात.