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नि॒वेश॑नः स॒ङ्गम॑नो॒ वसू॑नां॒ विश्वा॑ रू॒पाभिच॑ष्टे॒ शची॑भिः। दे॒वऽइ॑व सवि॒ता स॒त्यध॒र्मेन्द्रो॒ न त॑स्थौ सम॒रे प॑थी॒नाम् ॥६६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नि॒वेश॑न॒ इति॑ नि॒ऽवेश॑नः। स॒ङ्गम॑न॒ इति॑ स॒म्ऽगम॑नः। वसू॑नाम्। विश्वा॑। रू॒पा। अ॒भि। च॒ष्टे॒। शची॑भिः। दे॒व इ॒वेति॑ दे॒वःऽइ॑व। स॒वि॒ता। स॒त्यध॒र्मेति॑ स॒त्यऽध॑र्मा। इन्द्रः॑। न। त॒स्थौ॒। स॒म॒र इति॑ सम्ऽअ॒रे। प॒थी॒नाम् ॥६६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:66


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे स्त्री पुरुष गृहाश्रम करने के योग्य होते हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सत्यधर्मा) सत्यधर्म से युक्त (सविता) सब जगत् के रचनेवाले (देव इव) ईश्वर के समान (निवेशनः) स्त्री का साथी (सङ्गमनः) शीघ्रगति से युक्त (शचीभिः) बुद्धि वा कर्मों से (वसूनाम्) पृथिवी आदि पदार्थों के (विश्वा) सब (रूपा) रूपों को (अभिचष्टे) देखता है, (इन्द्रः) सूर्य्य के (न) समान (समरे) युद्ध में (पथीनाम्) चलते हुए मनुष्यों के सम्मुख (तस्थौ) स्थित होवे, वही गृहाश्रम के योग्य होता है ॥६६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में दो उपमालङ्कार हैं। मनुष्यों को योग्य है कि जैसे ईश्वर ने सब के उपकार के लिये कारण से कार्यरूप अनेक पदार्थ रच के उपयुक्त करे हैं; जैसे सूर्य मेघ के साथ युद्ध करके जगत् का उपकार करता है, वैसे रचनाक्रम के विज्ञान और सुन्दर क्रिया से पृथिवी आदि पदार्थों से अनेक व्यवहार सिद्ध कर प्रजा को सुख देवें ॥६६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशाः स्त्रीपुरुषा गृहाश्रमं कर्तुं योग्याः सन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(निवेशनः) यः स्त्रियां निविशते (सङ्गमनः) सम्यग्गन्ता (वसूनाम्) पृथिव्यादीनां पदार्थानाम् (विश्वा) सर्वाणि (रूपा) रूपाणि (अभि) (चष्टे) पश्यति (शचीभिः) प्रज्ञाभिः कर्म्मभिर्वा (देव इव) यथेश्वरः (सविता) सकलजगतः प्रसविता (सत्यधर्मा) सत्यो धर्मो यस्य सः (इन्द्रः) सूर्यः (न) इव (तस्थौ) तिष्ठेत् (समरे) संग्रामे। समर इति संग्रामनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.१७) (पथीनाम्) गच्छताम्। [अयं मन्त्रः शत०७.२.१.२० व्याख्यातः] ॥६६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यः सत्यधर्मा सविता देव इव निवेशनः सङ्गमनः शचीभिर्वसूनां विश्वा रूपाऽभिचष्टे। इन्द्रो न समरे पथीनां सम्मुखे तस्थौ, स एव गृहाश्रमाय योग्यो जायते ॥६६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारौ। यथेश्वरेण मनुष्योपकाराय कारणात् कार्य्याख्या अनेके पदार्था रचिता उपयुज्यन्ते, यथा सूर्यो मेघेन सह युद्धाय वर्त्तते, तथा मनुष्यैः सृष्टिक्रमविज्ञानेन सुक्रियया च भूम्यादिपदार्थेभ्योऽनेके व्यवहाराः संसाधनीयाः ॥६६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी हे जाणावे की ईश्वराने कारणापासून कार्यरूपाने अनेक उपयोगी पदार्थ निर्माण करून सर्वांवर उपकार केलेले आहेत. जसा सूर्य मेघांबरोबर युद्ध करून जगावर उपकार करतो तसे माणसांनी उत्पत्ती विज्ञान जाणून उत्तम क्रिया करून पृथ्वी इत्यादींद्वारे अनेक व्यवहार सिद्ध करून प्रजेला सुखी करावे.