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स॒ह र॒य्या निव॑र्त्त॒स्वाग्ने॒ पिन्व॑स्व॒ धा॑रया। वि॒श्वप्स्न्या॑ वि॒श्वत॒स्परि॑ ॥४१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒ह। र॒य्या। नि। व॒र्त्त॒स्व॒। अग्ने॑। पिन्व॑स्व। धा॑रया। वि॒श्वप्स्न्येति॑ वि॒श्वऽप्स्न्या॑। वि॒श्वतः॑। परि॑ ॥४१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:41


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वानों को कैसे वर्त्तना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् पुरुष ! आप (विश्वप्स्न्या) सब पदार्थों के भोगने का साधन (रय्या) लक्ष्मी को प्राप्त करानेवाली (धारया) अच्छी संस्कृत वाणी के (सह) साथ (विश्वतस्परि) सब संसार के बीच (नि) निरन्तर (वर्त्तस्व) वर्त्तमान हूजिये और हम लोगों का (पिन्वस्व) सेवन कीजिये ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् मनुष्यों को चाहिये कि इस जगत् में अच्छी बुद्धि और पुरुषार्थ के साथ श्रीमान् होकर अन्य मनुष्यों को भी धनवान् करें ॥४१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वद्भिः कथं वर्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(सह) (रय्या) श्रीप्रापिकया (नि) (वर्त्तस्व) (अग्ने) विद्वन् (पिन्वस्व) सेवस्व (धारया) सुसंस्कृतया वाचा (विश्वप्स्न्या) विश्वान् सर्वान् भोगान् यया प्साति तया (विश्वतः) सर्वस्य जगतः (परि) मध्ये। [अयं मन्त्रः शत०६.८.२.६ व्याख्यातः] ॥४१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! त्वं विश्वप्स्न्या रय्या धारया सह विश्वतस्परि निवर्त्तस्वास्मान् पिन्वस्व च ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिर्मनुष्यैरस्मिन् जगति सुबुद्ध्या पुरुषार्थेन श्रीमन्तो भूत्वाऽन्येऽपि धनवन्तः सम्पादनीयाः ॥४१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान माणसांनी या जगात चांगली बुद्धी व पुरुषार्थ या योगे श्रीमान (धनवान) बनून इतर माणसांनाही धनवान बनवावे.