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सु॒प॒र्णो᳖ऽसि ग॒रुत्माँ॑स्त्रि॒वृत्ते॒ शिरो॑ गाय॒त्रं चक्षु॑र्बृहद्रथन्त॒रे प॒क्षौ। स्तोम॑ऽआ॒त्मा छन्दा॒स्यङ्गा॑नि॒ यजू॑षि॒ नाम॑। साम॑ ते त॒नूर्वा॑मदे॒व्यं य॑ज्ञाय॒ज्ञियं॒ पुच्छं॒ धिष्ण्याः॑ श॒फाः। सु॒प॒र्णो᳖ऽसि ग॒रुत्मा॒न् दिवं॑ गच्छ॒ स्वः᳖ पत ॥४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒प॒र्ण इति॑ सुऽप॒र्णः। अ॒सि॒। ग॒रुत्मा॑न्। त्रि॒वृदिति॑ त्रि॒ऽवृत्। ते॒। शिरः॑। गा॒य॒त्रम्। चक्षुः॑। बृ॒ह॒द्र॒थ॒न्त॒रे इति॑ बृहत्ऽरथन्त॒रे। प॒क्षौ। स्तोमः॑। आ॒त्मा। छन्दा॑सि। अङ्गा॑नि। यजू॑षि। नाम॑। साम॑। ते॒। त॒नूः। वा॒म॒दे॒व्यमिति॑ वामऽदे॒व्यम्। य॒ज्ञा॒य॒ज्ञिय॒मिति॑ यज्ञाऽय॒ज्ञिय॑म्। पुच्छ॑म्। धिष्ण्याः॑। श॒फाः। सु॒प॒र्ण इति॑ सुऽप॒र्णः। अ॒सि॒। ग॒रुत्मा॑न्। दिव॑म्। ग॒च्छ॒। स्व॑रिति॒ स्वः᳖। प॒त॒ ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:4


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों के गुणों का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जिससे (ते) आपका (त्रिवृत्) तीन कर्म्म, उपासना और ज्ञानों से युक्त (शिरः) दुःखों का जिससे नाश हो (गायत्रम्) गायत्री छन्द से कहे विज्ञानरूप अर्थ (चक्षुः) नेत्र (बृहद्रथन्तरे) बड़े-बड़े रथों के सहाय से दुःखों को छुड़ानेवाले (पक्षौ) इधर-उधर के अवयव (स्तोमः) स्तुति के योग्य ऋग्वेद (आत्मा) अपना स्वरूप (छन्दांसि) उष्णिक् आदि छन्द (अङ्गानि) कान आदि (यजूंषि) यजुर्वेद के मन्त्र (नाम) नाम (यज्ञायज्ञियम्) ग्रहण करने और छोड़ने योग्य व्यवहारों के योग्य (वामदेव्यम्) वामदेव ऋषि ने जाने वा पढ़ाये (साम) तीसरे सामवेद (ते) आपका (तनूः) शरीर है, इससे आप (गरुत्मान्) महात्मा (सुपर्णः) सुन्दर सम्पूर्ण लक्षणों से युक्त (असि) हैं, जिससे (धिष्ण्याः) शब्द करने के हेतुओं में साधु (शफाः) खुर तथा (पुच्छम्) बड़ी पूँछ के समान अन्त्य का अवयव है, उसके समान जो (गरुत्मान्) प्रशंसित शब्दोच्चारण से युक्त (सुपर्णः) सुन्दर उड़नेवाले (असि) हैं, उस पक्षी के समान आप (दिवम्) सुन्दर विज्ञान को (गच्छ) प्राप्त हूजिये और (स्वः) सुख को (पत) ग्रहण कीजिये ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सुन्दर, शाखा, पत्र, पुष्प, फल और मूलों से युक्त वृक्ष शोभित होते हैं, वैसे ही वेदादि शास्त्रों के पढ़ने और पढ़ाने हारे सुशोभित होते हैं। जैसे पशु पूँछ आदि अवयवों से अपने काम करते और जैसे पक्षी पंखों से आकाश मार्ग से जाते-आते आनन्दित होते हैं, वैसे मनुष्य विद्या और अच्छी शिक्षा को प्राप्त हो पुरुषार्थ के साथ सुखों को प्राप्त हों ॥४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्गुणा उपदिश्यन्ते ॥

अन्वय:

(सुपर्णः) शोभनानि पर्णानि लक्षणानि यस्य सः (असि) (गरुत्मान्) गुर्वात्मा (त्रिवृत्) त्रीणि कर्मोपासनाज्ञानानि वर्त्तन्ते यस्मिन् तत् (ते) तव (शिरः) शृणाति हिनस्ति दुःखानि येन तत् (गायत्रम्) गायत्र्या विहितं विज्ञानम् (चक्षुः) नेत्रमिव (बृहद्रथन्तरे) बृहद्भी रथैस्तरन्ति दुःखानि याभ्यां सामभ्यां ते (पक्षौ) पार्श्वाविव (स्तोमः) स्तोतुमर्ह ऋग्वेदः (आत्मा) स्वरूपम् (छन्दांसि) उष्णिगादीनि (अङ्गानि) श्रोत्रादीनि (यजूंषि) यजुः श्रुतयः (नाम) आख्या (साम) तृतीयो वेदः (ते) तव (तनूः) शरीरम् (वामदेव्यम्) वामदेवेन दृष्टं विज्ञातं विज्ञापितं वा (यज्ञायज्ञियम्) यज्ञाः सङ्गन्तव्या व्यवहारा अयज्ञास्त्यक्तव्याश्च तान् यदर्हति तत् (पुच्छम्) पुच्छमिवान्त्योऽवयवः (धिष्ण्याः) दिधिषति शब्दयन्ति यैस्ते धिषणाः खुरोपरिभागास्तेषु साधवः (शफाः) खुराः (सुपर्णः) शोभनपतनशीलः (असि) अस्ति (गरुत्मान्) गरुतः प्रशस्ता शब्दा विद्यन्ते यस्य सः (दिवम्) दिव्यं विज्ञानम् (गच्छ) प्राप्नुहि (स्वः) सुखम् (पत) गृहाण। [अयं मन्त्रः शत०६.७.२.६ व्याख्यातः] ॥४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यतस्ते तव त्रिवृत् शिरो गायत्रं चक्षुर्बृहद्रथन्तरे पक्षौ स्तोम आत्मा छन्दांस्यङ्गानि यजूंषि नाम यज्ञायज्ञियं वामदेव्यं साम ते तनूश्चास्ति तस्मात् त्व गरुत्मान् सुपर्णोऽसि, यस्य धिषायाः शफा दीर्घं पुच्छमस्ति, तद्वद् यो गरुत्मान् सुपर्णोऽ(स्य)स्ति, स इव त्वं दिवं गच्छ स्वः पत ॥४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सुन्दरशाखापत्रपुष्पफलमूला वृक्षाः शोभन्ते, तथा वेदादिशास्त्राऽध्येतारोऽध्यापकाः सुरोचन्ते। यथा पशवः पुच्छाद्यवयवैः स्वकार्याणि साध्नुवन्ति, यथा च पक्षी पक्षाभ्यामाकाशमार्गेण गत्वाऽऽगत्य च मोदते तथा मनुष्या विद्यासुशिक्षाः प्राप्य पुरुषार्थेन सुखान्याप्नुवन्तु ॥४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. वृक्ष ज्याप्रमाणे सुंदर फांद्या, पाने, फुले, फळे व मूळ यांनी सुशोभित होतात त्याप्रमाणे वेदादिशास्राचे अध्ययन, अध्यापन करणारे सुशोभित होतात. जसे पशू शेपटी इत्यादी अवयवांनी काम करतात व पक्षी पंखांच्या साह्याने आकाशात आनंदाने विहार करतात तसे माणसांनी विद्या व चांगले शिक्षण प्राप्त करून पुरुषार्थपूर्वक सुख प्राप्त करावे.