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अदि॑त्यै॒ रास्ना॒स्यदि॑तिष्टे॒ बिलं॑ गृभ्णातु। कृ॒त्वाय॒ सा म॒हीमु॒खां मृ॒न्मयीं॒ योनि॑म॒ग्नये॑। पु॒त्रेभ्यः॒ प्राय॑च्छ॒ददि॑तिः श्र॒पया॒निति॑ ॥५९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अदि॑त्यै। रास्ना॑। अ॒सि॒। अदि॑तिः। ते॒। बिल॑म्। गृ॒भ्णा॒तु॒। कृ॒त्वाय॑। सा। म॒हीम्। उ॒खाम्। मृ॒न्मयी॒मिति॑ मृ॒त्ऽमयी॑म्। योनि॑म्। अ॒ग्नये॑। पु॒त्रेभ्यः॑। प्र। अ॒य॒च्छ॒त्। अदि॑तिः। श्र॒पया॑न्। इति॑ ॥५९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:59


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पढ़ाने हारी विदुषी स्त्री ! जिस कारण तू (अदित्यै) विद्याप्रकाश के लिये (रास्ना) दानशील (असि) है इसलिये (ते) तुझ से (बिलम्) ब्रह्मचर्य्य को धारण (कृत्वाय) करके (अदितिः) पुत्र और कन्या विद्या को (गृभ्णातु) ग्रहण करें सो (सा) तू (अदितिः) माता (मृन्मयीम्) मट्टी की (योनिम्) मिली और पृथक् (महीम्) बड़ी (उखाम्) पकाने की बटलोई को (अग्नये) अग्नि के निकट (पुत्रेभ्यः) पुत्रों को (प्रायच्छत्) देवे। विद्या और अच्छी शिक्षा से युक्त होकर बटलोई में (इति) इस प्रकार (श्रपयान्) अन्नादि पदार्थों को पकाओ ॥५९ ॥
भावार्थभाषाः - लड़के पुरुषों की और लड़कियाँ स्त्रियों की पाठशाला में जा ब्रह्मचर्य्य की विधिपूर्वक सुशीलता से विद्या और भोजन बनाने की क्रिया सीखें और आहार-विहार भी अच्छे नियम से सेवें। कभी विषय की कथा न सुनें। मद्य, मांस, आलस्य और अत्यन्त निद्रा को त्याग के पढ़ानेवाले की सेवा और उस के अनुकूल वर्त्त के अच्छे नियमों को धारण करें ॥५९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अदित्यै) दिवे विद्याप्रकाशाय (रास्ना) दात्री (असि) (अदितिः) पुत्रः पुत्री च (ते) तव सकाशात् (बिलम्) भरणं धारणम्। बिलं भरं भवति बिभर्तेः ॥ (निरु०२.१७) (गृभ्णातु) गृह्णातु (कृत्वाय) (सा) (महीम्) महतीम् (उखाम्) पाकस्थालीम् (मृन्मयीम्) मृद्विकाराम् (योनिम्) मिश्रिताम् (अग्नये) अग्निसम्बन्धे स्थापनाय (पुत्रेभ्यः) सन्तानेभ्यः (प्र) (अयच्छत्) दद्यात् (अदितिः) माता (श्रपयान्) श्रपयन्तु परिपाचयन्तु (इति) अनेन प्रकारेण। [अयं मन्त्रः शत०६.५.२.१३, २०, २१ व्याख्यातः] ॥५९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापिके विदुषि ! यतस्त्वमदित्यै रास्नासि, तस्मात् ते तव सकाशाद् बलं ब्रह्मचर्य्यधारणं कृत्वायादितिर्विद्या गृभ्णातु साऽदितिर्भवती मृन्मयीं योनिं महीमुखामग्नये पुत्रेभ्यश्च प्रायच्छत्। विद्यासुशिक्षाभ्यां युक्ता भूत्वोखामिति श्रपयानन्नादिपाकं कुर्वन्तु ॥५९ ॥
भावार्थभाषाः - कुमाराः पुरुषशालां कुमार्य्यश्च स्त्रीशालां गत्वा ब्रह्मचर्य्यं विधाय सुशीलतया विद्याः पाकविधिं च गृह्णीयुः। आहारविहारानपि सुनियमेन सेवयेयुः। न कदाचिद्विषयकथां शृणुयुः। मद्यमांसालस्यातिनिद्रां विहायाध्यापकसेवानुकूलताभ्यां वर्त्तित्वा सुव्रतानि धरेयुः ॥५९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - मुलांनी मुलांच्या शाळेत व मुलींनी मुलींच्या शाळेत जावे. ब्रह्मचर्य पाळून सुशील बनावे. विद्या प्राप्त करून भोजन तयार करण्याची क्रिया शिकावी. चांगल्या प्रकारे नियमपूर्वक आहार-विहार करावा. विषयाच्या गोष्टी कधी ऐकू नयेत. मद्य, मांसाचे सेवन करू नये, आळस व अतिनिद्रा सोडावी. शिकविणाऱ्यांची सेवा करून त्यांच्या अनुकूल वागावे व चांगल्या नियमांचे पालन करावे.