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उ॒खां कृ॑णोतु॒ शक्त्या॑ बा॒हुभ्या॒मदि॑तिर्धि॒या। मा॒ता पु॒त्रं यथो॒पस्थे॒ साग्निं बि॑भर्त्तु॒ गर्भ॒ऽआ। म॒खस्य॒ शिरो॑ऽसि ॥५७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒खाम्। कृ॒णो॒तु॒। शक्त्या॑। बा॒हुभ्या॒मिति॑ बा॒हुभ्या॑म्। अदि॑तिः। धि॒या। मा॒ता। पु॒त्रम्। यथा॑। उ॒पस्थ॒ इत्यु॒पऽस्थे॑। सा। अ॒ग्निम्। बि॒भ॒र्त्तु॒। गर्भे॑। आ। म॒खस्य॑। शिरः॑। अ॒सि॒ ॥५७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:57


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे गृहस्थ पुरुष ! जिस कारण तू (मखस्य) यज्ञ के (शिरः) उत्तमाङ्ग के समान (असि) है इस कारण आप (धिया) बुद्धि वा कर्म से तथा (शक्त्या) पाकविद्या के सामर्थ्य और (बाहुभ्याम्) दोनों बाहुओं से (उखाम्) पकाने की बटलोई को (कृणोतु) सिद्ध कर जो (अदितिः) जननी आपकी स्त्री है (सा) वह (गर्भे) अपनी कोख में (यथा) जैसे (माता) माता (उपस्थे) अपनी गोद में (पुत्रम्) पुत्र को सुखपूर्वक बैठावे, वैसे (अग्निम्) अग्नि के समान तेजस्वी वीर्य्य को (आबिभर्त्तु) धारण करे ॥५७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। कुमार स्त्रीपुरुषों को योग्य है कि ब्रह्मचर्य्य के साथ विद्या और अच्छी शिक्षा को पूर्ण कर, बल-बुद्धि और पराक्रमयुक्त सन्तान उत्पन्न होने के लिये वैद्यकशास्त्र की रीति से बड़ी-बड़ी ओषधियों से पाक बना के और विधिपूर्वक गर्भाधान करके पीछे पथ्य से रहें और आपस में मित्रता के साथ वर्त्त के पुत्रों के गर्भाधानादि कर्म्म किया करें ॥५७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(उखाम्) पाकस्थालीम् (कृणोतु) (शक्त्या) पाकविद्यासामर्थ्येन (बाहुभ्याम्) (अदितिः) जननी (धिया) प्रज्ञया कर्मणा वा (माता) (पुत्रम्) (यथा) (उपस्थे) स्वाङ्के (सा) पत्नी (अग्निम्) अग्निमिव वर्त्तमानं वीर्य्यम् (बिभर्त्तु) (गर्भे) कुक्षौ (आ) (मखस्य) यज्ञस्य (शिरः) उत्तमाङ्गवद्वर्त्तमानः (असि)। [अयं मन्त्रः शत०६.५.१.११ व्याख्यातः] ॥५७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे गृहस्थ ! यतस्त्वं मखस्य शिरोऽसि, तस्माद्भवान् धिया शक्त्या बाहुभ्यामुखां कृणोतु। याऽदितिस्ते स्त्री वर्त्तते, सा गर्भे यथा मातोपस्थे पुत्रं धरति, तथाऽग्निमाबिभर्त्तु ॥५७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। कुमारौ कन्यावरौ ब्रह्मचर्य्येण विद्यासुशिक्षे पूर्णे कृत्वा बलबुद्धिपराक्रमयुक्तसन्तानोत्पादनाय विवाहं कृत्वा वैद्यकशास्त्ररीत्या महौषधिजं पाकं विधाय विधिवद्गर्भाधानं कृत्वोत्तरपथ्यं विदध्याताम्। परस्परं सुहृत्तया वर्त्तित्वाऽपत्यस्य गर्भाधानादिकर्माणि कुर्याताम् ॥५७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. तरुण व तरुणींनी ब्रह्मचर्य पाळून विद्येने युक्त होऊन चांगले शिक्षण पूर्ण करावे. बल, बुद्धी व पराक्रमयुक्त संताने उत्पन्न करावीत. त्यासाठी वैद्यकशास्त्राच्या पद्धतीने चांगली औषधे तयार करून विधिपूर्वक गर्भाधान करावे व पथ्याने राहावे. आपापसात प्रीतिपूर्वक व्यवहार करून पुत्रप्राप्तीसाठी गर्भाधान इत्यादी कार्य करावे.