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द्यौस्ते॑ पृ॒ष्ठं पृ॑थि॒वी स॒धस्थ॑मा॒त्मान्तरि॑क्षꣳ समु॒द्रो योनिः॑। वि॒ख्याय॒ चक्षु॑षा॒ त्वम॒भि ति॑ष्ठ पृतन्य॒तः ॥२० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द्यौः। ते॒। पृ॒ष्ठम्। पृ॒थि॒वी। स॒धस्थ॒मिति॑ स॒धऽस्थ॑म्। आ॒त्मा। अ॒न्तरि॑क्षम्। स॒मु॒द्रः। योनिः॑। वि॒ख्यायेति॑ वि॒ऽख्याय॑। चक्षु॑षा। त्वम्। अ॒भि। ति॒ष्ठ॒। पृ॒त॒न्य॒तः ॥२० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:20


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य क्या करके क्या सिद्ध करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् राजन् ! जिस (ते) आप का (द्यौः) प्रकाश के तुल्य विनय (पृष्ठम्) इधर का व्यवहार (पृथिवी) भूमि के समान (सधस्थम्) साथ स्थिति (अन्तरिक्षम्) आकाश के समान अविनाशी धैर्ययुक्त (आत्मा) अपना स्वरूप और (समुद्रः) समुद्र के तुल्य (योनिः) निमित्त है सो (त्वम्) आप (चक्षुषा) विचार के साथ (विख्याय) अपना ऐश्वर्य प्रसिद्ध करके (पृतन्यतः) अपनी सेना को लड़ाने की इच्छा करते हुए मनुष्य के (अभि) सन्मुख (तिष्ठ) स्थित हूजिये ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो पुरुष न्याय मार्ग के अनुसार उत्साह, स्थान और आत्मा जिसके दृढ़ हों; विचार से सिद्ध करने योग्य जिसके प्रयोजन हों, उसकी सेना वीर होती है, वह निश्चय विजय करने को समर्थ होवे ॥२० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्याः किं साध्नुयुरित्याह ॥

अन्वय:

(द्यौः) प्रकाश इव विनयः (ते) तव (पृष्ठम्) अर्वाग्व्यवहारः (पृथिवी) भूमिरिव (सधस्थम्) सहस्थानम् (आत्मा) स्वस्वरूपम् (अन्तरिक्षम्) आकाशइवाक्षयोऽक्षोभः (समुद्रः) सागर इव (योनिः) निमित्तम् (विख्याय) प्रसिद्धीकृत्य (चक्षुषा) लोचनेन (त्वम्) (अभि) आभिमुख्ये (तिष्ठ) (पृतन्यतः) आत्मनः पृतनामिच्छतो जनस्य। [अयं मन्त्रः शत०६.३.३.१२ व्याख्यातः] ॥२० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् राजन् ! यस्य ते तव द्यौः पृष्ठं पृथिवी सधस्थमन्तरिक्षमात्मा समुद्रो योनिरस्ति, स त्वं चक्षुषा विख्याय पृतन्यतोऽभितिष्ठ ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो न्यायपथानुगामी, दृढोत्साहस्थानात्मा, यस्य प्रयोजनानि विवेकसाध्यानि सन्ति, तस्य वीरसेना जायते, स ध्रुवं विजयं कर्त्तुं शक्नुयात् ॥२० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या माणसाचा आत्मा न्यायाने वागणारा, उत्साही व दृढ असेल व ज्याचे प्रयोजन विचारपूर्वक असेल, ज्याची सेना वीरश्रीयुक्त असेल त्याचा निश्चितपणे विजय होतो.