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अ॒भि॒भूर॑स्ये॒तास्ते॒ पञ्च॒ दिशः॑ कल्पन्तां॒ ब्रह्मँ॒स्त्वं ब्र॒ह्मासि॑ सवि॒तासि॑ स॒त्यप्र॑सवो॒ वरु॑णो॑ऽसि स॒त्यौजा॒ऽइन्द्रो॑ऽसि॒ विशौ॑जा रु॒द्रो᳖ऽसि सु॒शेवः॑। बहु॑कार॒ श्रेय॑स्कर॒ भूय॑स्क॒रेन्द्र॑स्य॒ वज्रो॑ऽसि॒ तेन॑ मे रध्य ॥२८॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि॒भुरित्य॑भि॒ऽभूः। अ॒सि॒। ए॒ताः। ते। पञ्च॒। दि॒शः॑। क॒ल्प॒न्ता॒म्। ब्रह्म॑न्। त्वम्। ब्र॒ह्मा। अ॒सि॒। स॒वि॒ता। अ॒सि॒। स॒त्य॑प्रसव॒ इति॑ स॒त्यऽप्र॑सवः। वरु॑णः। अ॒सि॒। स॒त्यौजा॒ इति॑ स॒त्यऽओ॑जाः। इन्द्रः॑। अ॒सि॒। विशौ॑जाः। रु॒द्रः। अ॒सि॒। सु॒शेव॒ इति॑ सु॒ऽशेवः॑। बहु॑का॒रेति॒ बहु॑ऽकार। श्रेय॑स्कर। श्रेयः॑क॒रेति॒ श्रेयः॑ऽकर। भूय॑स्कर। भूयः॑क॒रेति॒ भूयः॑ऽकर। इन्द्र॑स्य। वज्रः॑। अ॒सि॒। तेन॑। मे॒। र॒ध्य॒ ॥२८॥

यजुर्वेद » अध्याय:10» मन्त्र:28


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा कैसा होके किसके लिये क्या करे, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (बहुकार) बहुत सुखों (श्रेयस्कर) कल्याण और (भूयस्कर) बार-बार अनुष्ठान करनेवाले (ब्रह्मन्) आत्मविद्या को प्राप्त हुए जैसे जिस (ते) आपके (एताः) ये (पञ्च) पूर्व आदि चार और ऊपर नीचे एक पाँच (दिशः) दिशा सामर्थ्ययुक्त हों, वैसे मेरे लिये आपकी पत्नी की कीर्ति से भी (कल्पन्ताम्) सुखयुक्त होवें। जैसे आप (अभिभूः) दुष्टों का तिरस्कार करनेवाले (असि) हैं, (सविता) ऐश्वर्य के उत्पन्न करनेहारे (असि) हैं, (सत्यप्रसवः) सत्य कर्म के साथ ऐश्वर्य है जिसका ऐसे (वरुणः) उत्तम स्वभाववाले (असि) हैं (सत्यौजाः) सत्य बल से युक्त (इन्द्रः) सुखों के धारण करनेहारे (असि) हैं (विशौजाः) प्रजाओं की बीच पराक्रमवाले (सुशेवः) सुन्दर सुखयुक्त (रुद्रः) शत्रु और दुष्टों को रुलानेवाले (असि) हैं, (इन्द्रस्य) ऐश्वर्य के (वज्रः) प्राप्त करनेहारे (असि) हैं, वैसे मैं भी होऊँ, जैसे मैं आप के वास्ते ऋद्धि-सिद्धि करूँ, वैसे (तेन) उससे (मे) मेरे लिये (रध्य) कार्य्य करने का सामर्थ्य कीजिये ॥२८॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्यों को चाहिये कि जैसा पुरुष सब दिशाओं में कीर्तियुक्त, वेदों को जानने, धनुर्वेद और अर्थवेद की विद्या में प्रवीण, सत्य करने और सब को सुख देनेवाला, धर्मात्मा पुरुष होवे, उसकी स्त्री भी वैसे ही होवे। उनको राजधर्म में स्थापन करके बहुत सुख और बहुत सी शोभा को प्राप्त हों ॥२८॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा कीदृशो भूत्वा कस्मै किं कुर्य्यादित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(अभिभूः) दुष्टानां तिरस्कर्त्ता (असि) (एताः) (ते) तव (पञ्च) पूर्वादयश्चतस्रोऽध ऊर्ध्वा चैका (दिशः) (कल्पन्ताम्) सुखयुक्ता भवन्तु (ब्रह्मन्) प्राप्तब्रह्मविद्य (त्वम्) (ब्रह्मा) चतुर्वेदाखिलराजप्रजासुखनिमित्तानां पदार्थानां निर्माता (असि) (सविता) ऐश्वर्योत्पादकः (असि) (सत्यप्रसवः) सत्येन कर्मणा प्रसव ऐश्वर्यं यस्य सः (वरुणः) वरस्वभावः (असि) (सत्यौजाः) सत्यमोजो बलं यस्य सः (इन्द्रः) सुखानां धाता (असि) (विशौजाः) विशा प्रजया सहौजः पराक्रमो यस्य सः (रुद्रः) शत्रूणां दुष्टानां रोदयिता (असि) (सुशेवः) शोभनं शेवं सुखं यस्य सः, शेवमिति सुखनामसु पठितम्। (निघं०३.६) (बहुकार) बहूनां सुखानां कर्त्तः (श्रेयस्कर) कल्याणकर्त्तः (भूयस्कर) पुनःपुनरनुष्ठातः (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यस्य (वज्रः) प्रापकः (असि) (तेन) (मे) मह्यम् (रध्य) संराध्नुहि ॥ अयं मन्त्रः (शत०५.४.४.६-२१) व्याख्यातः ॥२८॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे बहुकार श्रेयस्कर भूयस्कर ब्रह्मन् ! यथा यस्य ते तवैताः पञ्च दिशः कल्पेरन्, तथा मम भवत्पत्न्याः कल्पन्ताम्। यथा त्वमभिभूरसि सवितासि सत्यप्रसवो वरुणोऽसि सत्यौजा इन्द्रोऽसि विशौजाः सुशेवो रुद्रोऽसीन्द्रस्य वज्रोऽसि, तथाऽहमपि भवेयम्, यथा येन तुभ्यमृद्धिसिद्धी कुर्याम्, तथा त्वं तेन मे रध्य ॥२८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा पुरुषः सर्वदिक्सुकीर्तिर्वेदविद् प्रवीणः सत्यकारी सर्वस्य सुखप्रदो धार्मिको जनो भवेत् तथा तत् पत्नी स्यात्, ते राजधर्मे स्वीकृत्यास्माद् बहुसुखं बहुश्रियं च प्राप्नुवन्तु ॥२८॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याप्रमाणे पुरुषाने दिगदिगंतरी, कीर्तिमान, वेदज्ञात, धनुर्वेद व अर्थवेद प्रवीण, सत्यवादी, सुखकारक व धर्मात्मा बनले पाहिजे त्याचप्रमाणे त्याच्या स्त्रीनेही तसेच बनले पाहिजे. सर्व माणसांनी अशा स्त्री-पुरुषांना राज्यावर बसवून सुखप्राप्ती करून घ्यावी.