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सोम॑स्य॒ त्विषि॑रसि॒ तवे॑व मे॒ त्विषि॑र्भूयात्। मृ॒त्योः पा॒ह्योजो॑ऽसि॒ सहो॑ऽस्य॒मृत॑मसि ॥१५॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सोम॑स्य। त्विषिः॑। अ॒सि॒। तवे॒वेति॒ तव॑ऽइव। मे॒। त्विषिः॑। भू॒या॒त्। मृ॒त्योः। पा॒हि॒। ओजः॑। अ॒सि॒। सहः॒। अ॒सि॒। अ॒मृत॑म्। अ॒सि॒ ॥१५॥

यजुर्वेद » अध्याय:10» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा और प्रजापुरुषों को उचित है कि ईश्वर के समान न्यायाधीश होकर आपस में एक-दूसरे की रक्षा करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे परम आप्त विद्वन् ! जैसे आप (सोमस्य) ऐश्वर्य्य का (त्विषिः) प्रकाश करनेहारे (असि) हैं, (ओजः) पराक्रमयुक्त (असि) हैं, (सहः) बलवान् (असि) हैं (अमृतम्) जन्म-मरणादि धर्म से रहित (असि) हैं, वैसा मैं भी होऊँ। (तवेव) आपके समान (मे) मेरा (त्विषिः) विद्या प्रकाश से भाग्योदय (भूयात्) हो। आप मुझ को (मृत्योः) मृत्यु से (पाहि) बचाइये ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हे पुरुषो ! जैसे धार्मिक विद्वान् अपने को जो इष्ट है, उसी को प्रजा के लिये भी इच्छा करें। जैसे प्रजा के जन राजपुरुषों की रक्षा करें, वैसे राजपुरुष भी प्रजाजनों की निरन्तर रक्षा करें ॥१५॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजप्रजाजनैरीश्वरवद् वर्त्तित्वा परस्परेषां रक्षणं विधेयमित्याह ॥

अन्वय:

(सोमस्य) ऐश्वर्यस्य (त्विषिः) दीप्तिः (असि) (तवेव) (मे) (त्विषिः) (भूयात्) (मृत्योः) मरणात् (पाहि) (ओजः) पराक्रमयुक्तः (असि) (सहः) बलवान् (असि) (अमृतम्) मरणधर्मरहितम् (असि) ॥ अयं मन्त्रः (शत०५.४.१.११-१४) व्याख्यातः ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमाप्त ! यथा त्वं सोमस्य त्विषिरस्योजोऽसि सहोऽस्यमृतमसि, तथाऽहं भवेयम्। तवेव मे त्विषिरोजः सहोऽमृतं च भूयात्, त्वं मृत्योर्मा पाहि ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हे पुरुषाः ! यथाऽऽप्ताः स्वेष्टं प्रजाभ्योऽपीच्छेयुः, यथा प्रजा राजपुरुषान् रक्षेयुस्तथा प्रजाजनान् सततं रक्षन्तु ॥१५॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! धार्मिक विद्वान पुरुषांनी स्वतःला जे इष्ट असेल तसेच प्रजेलाही मिळावे अशी अपेक्षा बाळगावी. ज्याप्रमाणे प्रजा राजाचे रक्षण करते तसेच राजपुरुषांनीही (परमेश्वराप्रमाणे) प्रजेचे निरन्तर रक्षण करावे.