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य꣡त्सो꣢म चि꣣त्र꣢मु꣣꣬क्थ्यं꣢꣯ दि꣣व्यं꣡ पार्थि꣢꣯वं꣣ व꣡सु꣢ । त꣡न्नः꣢ पुना꣣न꣡ आ भ꣢꣯र ॥९९९॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

यत्सोम चित्रमुक्थ्यं दिव्यं पार्थिवं वसु । तन्नः पुनान आ भर ॥९९९॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य꣢त् । सो꣣म । चित्र꣢म् । उ꣣क्थ्यम्꣢ । दि꣣व्य꣢म् । पा꣡र्थि꣢꣯वम् । व꣡सु꣢꣯ । तत् । नः꣣ । पुनानः꣢ । आ । भ꣣र ॥९९९॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 999 | (कौथोम) 3 » 2 » 13 » 1 | (रानायाणीय) 6 » 4 » 3 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम मन्त्र में परमात्मा और आचार्य से प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) दिव्य आनन्द, विद्या आदि परम ऐश्वर्य से युक्त जगदीश्वर वा आचार्य ! (यत्) जो (चित्रम्) अद्भुत, (उक्थ्यम्) प्रशंसनीय, (दिव्यम्) योगसिद्धि,मोक्ष आदि दिव्य, तथा (पार्थिवम्) सोना, हीरे, मोती, चक्रवर्त्ती राज्य आदि भौतिक (वसु) धन है, (तत्) उस धन को, आप (नः) हमें (पुनानः) पवित्र करते हुए (आ भर) प्रदान कीजिए ॥१॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मा की कृपा को प्राप्त हुए और आचार्य द्वारा तरह-तरह की आध्यात्मिक तथा भौतिक विद्याओं में पारङ्गत किये हुए हम सकल दिव्य एवं पार्थिव धन को एकत्र कर सकते हैं ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्रादौ परमात्मानमाचार्यं च प्रार्थयते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) दिव्यानन्दविद्यादिपरमैश्वर्ययुक्त जगदीश्वर आचार्य वा ! (यत् चित्रम्) अद्भुतम्, (उक्थ्यम्) प्रशंसनीयम्, (दिव्यम्) योगसिद्धिमोक्षादिकम् अलौकिकम् (पार्थिवम्) भौतिकं च सुवर्णहीरकमुक्ताचक्रवर्तिराज्यादिकम् (वसु) धनं विद्यते (तत्) धनम्, त्वम् (नः) अस्मान् (पुनानः) पवित्रयन् (आ भर) आहर ॥१॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मनः कृपां प्राप्ता आचार्यद्वारा च विविधास्वाध्यात्मिकीषु भौतिकीषु च विद्यासु पारं गमिता वयं सर्वं दिव्यं पार्थिवं च धनमर्जयितुं शक्नुमः ॥१॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।१९।१।