शु꣡चिः꣢ पाव꣣क꣡ उ꣢च्यते꣣ सो꣡मः꣢ सु꣣तः꣡ स मधु꣢꣯मान् । दे꣣वावी꣡र꣢घशꣳस꣣हा꣢ ॥९६७॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)शुचिः पावक उच्यते सोमः सुतः स मधुमान् । देवावीरघशꣳसहा ॥९६७॥
शु꣡चिः꣢꣯ । पा꣣वकः꣢ । उ꣣च्यते । सो꣡मः꣢꣯ । सु꣣तः꣢ । सः । म꣡धु꣢꣯मान् । दे꣣वावीः꣢ । दे꣣व । अवीः꣢ । अ꣣घशꣳसहा꣢ । अ꣣घशꣳस । हा꣢ ॥९६७॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमेश्वर कैसा है, यह बताया गया है।
(सुतः) अभिषुत किया गया (स सोमः) वह रसों का भण्डार परमेश्वर (शुचिः) पवित्र, (पावकः) पवित्र करनेवाला, (मधुमान्) मधुर, (देवावीः) दिव्यगुणी विद्वानों की रक्षा करनेवाला और (अघशंसहा) पापप्रशंसकों का विनाशक (उच्यते) कहा जाता है ॥७॥
स्तुति और उपासना से प्रसन्न किया गया परमेश्वर परम आनन्द के समूह को प्रवाहित करता हुआ उपासकों द्वारा अत्यन्त मधुर और पापों का उन्मूलन करनेवाला अनुभव किया जाता है ॥७॥ इस खण्ड में परमात्मा के स्वरूपवर्णनपूर्वक उसकी स्तुति-प्रार्थना-उपासना का और ब्रह्मानन्द का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्वखण्ड के साथ सङ्गति है ॥ षष्ठ अध्याय में प्रथम खण्ड समाप्त ॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमेश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह।
(सुतः) अभिष्यन्दितः (स सोमः) असौ रसागारः परमेशः (शुचिः) पवित्रः, (पावकः) पवित्रयिता, (मधुमान्) मधुरः, (देवावीः) देवान् दिव्यगुणयुक्तान् विदुषः अवति रक्षतीति तादृशः, (अघशंसहा) पापप्रशंसकानां हन्ता च (उच्यते) कथ्यते ॥७॥
स्तवनेनोपासनया च प्रसादितः परमेश्वरः परमानन्दसन्दोहं प्रवाहयन्नुपासकैर्मधुरमधुरः पापानामुन्मूलयिता चानुभूयते ॥७॥ अस्मिन् खण्डे परमात्मनः स्वरूपवर्णनपुरस्सरं तत्स्तुतिप्रार्थनोपासनाया ब्रह्मानन्दस्य च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्ति ॥