न꣡ हि त्वा꣢꣯ शूर दे꣣वा꣡ न मर्ता꣢꣯सो꣣ दि꣡त्स꣢न्तम् । भी꣣मं꣢꣫ न गां वा꣣र꣡य꣢न्ते ॥७३०॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)न हि त्वा शूर देवा न मर्तासो दित्सन्तम् । भीमं न गां वारयन्ते ॥७३०॥
न । हि । त्वा꣣ । शूर । देवाः꣢ । न । म꣡र्ता꣢꣯सः । दि꣡त्स꣢꣯न्तम् । भी꣣म꣢म् । न । गाम् । वा꣣र꣡य꣢न्ते ॥७३०॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमेश्वर के दान का वर्णन है।
हे (शूर) दानशूर परमात्मन् ! (दित्सन्तम्) जब आप किसी को भौतिक या दिव्य ऐश्वर्य देना चाहते हो, तब (त्वा) आपको (नहि) न तो (देवाः) चमकीले अग्नि, सूर्य, चन्द्र, विद्युत् आदि कोई जड़ पदार्थ और (न) न ही (मर्तासः) मनुष्य (वारयन्ते) रोक सकते हैं, (भीमं गां न) जैसे भंयकर दुर्दान्त विद्युत् रूप अग्नि को कोई नहीं रोक सकता ॥३॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥३॥
जो कृपालु परमेश्वर सूर्यकिरण, पत्र, पुष्प, फल, वायु जल आदि वस्तुओं को और सत्य, न्याय, दया, उदारता आदि को बिना मूल्य के ही प्रदान करता है, उसकी सबको कृतज्ञता के साथ वन्दना करनी चाहिए ॥३॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमेश्वरस्य दानं वर्णयति।
हे (शूर) दानशौण्ड परमात्मन् ! (दित्सन्तम्) भौतिकं दिव्यं चैश्वर्यं दातुमिच्छन्तम् (त्वा) त्वाम् (नहि) नैव (देवाः) दीप्यमानाः अग्निसूर्यचन्द्रविद्युदादयः, (न) नापि च (मर्तासः) मनुष्याः (वारयन्ते) निरोद्धुं शक्नुवन्ति। कथमिव ? (भीमं गां न) भयंकरं विद्युदग्निमिव। यथा दुर्दान्तं विद्युदग्निं केचिद् वारयितुं नोत्सहन्ते तद्वदित्यर्थः ॥३॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥३॥
यः कृपालुः परमेश्वरः सूर्यरश्मिपत्रपुष्पफलवायुवारिप्रभृतीनि वस्तूनि सत्यन्यायदयादाक्षिण्यादीनि च निःशुल्कमेव प्रयच्छति स सर्वैः कृतज्ञतया वन्दनीया ॥३॥