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ते꣢ सु꣣ता꣡सो꣢ विप꣣श्चि꣡तः꣢ शु꣣क्रा꣢ वा꣣यु꣡म꣢सृक्षत ॥१८११॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

ते सुतासो विपश्चितः शुक्रा वायुमसृक्षत ॥१८११॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते । सु꣣ता꣡सः꣢ । वि꣣पश्चि꣡तः꣢ । वि꣣पः । चि꣡तः꣢꣯ । शु꣣क्राः꣢ । वा꣣यु꣢म् । अ꣣सृक्षत ॥१८११॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1811 | (कौथोम) 9 » 1 » 17 » 2 | (रानायाणीय) 20 » 4 » 4 » 2


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

आगे फिर उसी विषय को कहा गया है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(सुतासः) परमात्मा द्वारा प्रेरित, (विपश्चितः) मेधायुक्त, (शुक्राः) पवित्र (ते) वे प्रसिद्ध ब्रह्मानन्द-रस रूप सोम (वायुम्) प्राण को (असृक्षत) ऊपर की ओर प्रेरित करते हैं ॥२॥

भावार्थभाषाः -

प्राप्त हुए ब्रह्मानन्द योगी के प्राणों को ऊपर की ओर प्रेरित करते हुए उसे मोक्ष प्रदान करते हैं ॥२॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ पुनस्तमेव विषयमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

 (सुतासः) परमात्मना प्रेरिताः, (विपश्चितः) मेधायुक्ताः (शुक्राः) पवित्राः (ते) प्रसिद्धाः सोमाः ब्रह्मानन्दरसाः (वायुम्) प्राणम् (असृक्षत) ऊर्ध्वं प्रेरयन्ति ॥२॥

भावार्थभाषाः -

प्राप्ता ब्रह्मानन्दाः योगिनः प्राणानूर्ध्वं प्रेरयन्तस्तस्मै निःश्रेयसं प्रयच्छन्ति ॥२॥