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प꣡व꣢स्व सोम म꣣न्द꣢य꣣न्नि꣡न्द्रा꣢य꣣ म꣡धु꣢मत्तमः ॥१८१०॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

पवस्व सोम मन्दयन्निन्द्राय मधुमत्तमः ॥१८१०॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प꣡व꣢꣯स्व । सो꣣म । मन्द꣡य꣢न् । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । म꣡धु꣢꣯मत्तमः ॥१८१०॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1810 | (कौथोम) 9 » 1 » 17 » 1 | (रानायाणीय) 20 » 4 » 4 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम मन्त्र में ब्रह्मानन्द-रस का विषय कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) ब्रह्मानन्द-रस ! (मधुमत्तमः) अतिशय मधुर तू (इन्द्राय) जीवात्मा को (मन्दयन्) मोद प्रदान करता हुआ (पवस्व) प्रवाहित हो ॥१॥

भावार्थभाषाः -

ब्रह्मानन्द का माधुर्य वही जानता है, जो उसका अनुभव करता है ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्रादौ ब्रह्मानन्दरसविषय उच्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) ब्रह्मानन्दरस ! (मधुमत्तमः) अतिशयेन मधुरः त्वम् (इन्द्राय) जीवात्मने (मन्दयन्) मोदं प्रयच्छन् (पवस्व) प्रस्रव ॥१॥

भावार्थभाषाः -

ब्रह्मानन्दस्य माधुर्यं स एव जानाति यस्तमनुभवति ॥१॥