वांछित मन्त्र चुनें
आर्चिक को चुनें

वि꣢ स्रु꣣त꣢यो꣣ य꣡था꣢ प꣣थ꣢꣫ इन्द्र त्वद्यन्तु रातयः ॥१७७०॥

(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)
स्वर-रहित-मन्त्र

वि स्रुतयो यथा पथ इन्द्र त्वद्यन्तु रातयः ॥१७७०॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि । स्रु꣣त꣡यः꣢ । य꣡था꣢꣯ । प꣣थः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯ । त्वत् । य꣣न्तु । रात꣡यः꣢ ॥१७७०॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1770 | (कौथोम) 9 » 1 » 2 » 3 | (रानायाणीय) 20 » 1 » 2 » 3


बार पढ़ा गया

हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तृतीय ऋचा पूर्वार्चिक में ४५३ क्रमाङ्क पर परमात्मा, जीवात्मा और राजा को सम्बोधन की गयी थी। यहाँ परमेश्वर और आचार्य को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

(यथा) जिस प्रकार (पथः) राजमार्ग से (सुतयः) छोटे-छोटे मार्ग विविध दिशाओं में जाते हैं, उसी प्रकार हे (इन्द्र) जगदीश्वर वा आचार्य ! (त्वत्) आपके पास से (रातयः) ऐश्वर्यों के दान वा विद्या-दान (वियन्तु) विविध लोगों के पास जाएँ ॥३॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥३॥

भावार्थभाषाः -

जैसे राजमार्ग से विविध छोटे-छोटे मार्ग निकल कर पथिकों का उपकार करते हैं, वैसे ही परमेश्वर और आचार्य से दिव्य गुण-कर्म और विविध विद्याएँ निकल कर उपासकों वा शिष्यों को उपकृत करें ॥३॥

बार पढ़ा गया

संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तृतीया ऋक् पूर्वार्चिके ४५३ क्रमाङ्के परमात्मानं जीवात्मानं राजानं च सम्बोधिता। अत्र परमेश्वर आचार्यश्चोच्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

(यथा) येन प्रकारेण (पथः२) राजमार्गात् (स्रुतयः) लघुमार्गाः वियन्ति विभिन्नासु दिक्षु गच्छन्ति तद्वत्, हे (इन्द्र) जगदीश्वर आचार्य वा ! (त्वत्) त्वत्सकाशात्, (रातयः) ऐश्वर्यदानानि विद्यादानानि (च वियन्तु) विविधं गच्छन्तु ॥३॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥३॥

भावार्थभाषाः -

यथा राजमार्गादन्ये विविधा लघुमार्गा निःसृत्य पथिकानुपकुर्वन्ति तथैव परमेश्वरादाचार्याच्च दिव्यगुणकर्माणि विविधा विद्याश्च निःसृत्योपासकान् शिष्यांश्चोपकुर्वन्तु ॥३॥