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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: निध्रुविः काश्यपः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

प꣡व꣢माना दि꣣व꣢꣫स्पर्य꣣न्त꣡रि꣢क्षादसृक्षत । पृ꣣थिव्या꣢꣫ अधि꣣ सा꣡न꣢वि ॥१७००॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

पवमाना दिवस्पर्यन्तरिक्षादसृक्षत । पृथिव्या अधि सानवि ॥१७००॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प꣡व꣢꣯मानाः । दि꣣वः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । अ꣣न्त꣡रि꣢क्षात् । अ꣣सृक्षत । पृथिव्याः꣣ । अ꣡धि꣢꣯ । सा꣡न꣢꣯वि ॥१७००॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1700 | (कौथोम) 8 » 2 » 16 » 2 | (रानायाणीय) 18 » 4 » 1 » 2


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में सूर्य-किरणों के उपकार-वर्णन द्वारा भगवान् के उपकारों का वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

परमात्मा से रची हुई (पवमानाः) पवित्र करनेवाली सूर्य-रश्मियाँ(दिवः परि) द्युलोक से और (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से(पृथिव्याः) भूमि के (सानवि अधि) उच्च प्रदेशों पर (असृक्षत) सूर्य-ताप और मेघ-जल को बरसाती हैं ॥२॥

भावार्थभाषाः -

यदि सूर्य न हो तो भूमि पर प्रकाश, ताप, वर्षा, ऋतुओं आदि का निर्माण कुछ भी न हो, सब जगह घोर अँधेरा व्यापा रहे। ऐसा अद्भुत सूर्य परमात्मा ने ही रचा है, इसलिए उसी की वह महिमा है ॥२॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ सूर्यकिरणानामुपकारवर्णनमुखेन भगवदुपकारा वर्ण्यन्ते।

पदार्थान्वयभाषाः -

परमात्मना सृष्टाः (पवमानाः) पवित्रतासम्पादकाः सूर्यरश्मयः (दिवः परि) द्युलोकात् (अन्तरिक्षात्) मध्यलोकाच्च (पृथिव्याः) भूमेः (सानवि अधि) सानुप्रदेशे(असृक्षत) सूर्यतापं मेघजलं च वर्षन्ति ॥२॥

भावार्थभाषाः -

यदि सूर्यो न भवेत् तर्हि भूमौ प्रकाशस्तापो वृष्टिर्ऋत्वादिनिर्माणं किमपि न भवेत्, सर्वत्र घोरं तमो व्याप्नुयात्। एतादृशोऽद्भुतः सूर्यः परमात्मनैव रचित इति तस्यैव स महिमा ॥२॥