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अ꣡स्ता꣢वि꣣ म꣡न्म꣢ पू꣣र्व्यं꣡ ब्रह्मेन्द्रा꣢꣯य वोचत । पू꣣र्वी꣢रृ꣣त꣡स्य꣢ बृह꣣ती꣡र꣢नूषत स्तो꣣तु꣢र्मे꣣धा꣡ अ꣢सृक्षत ॥१६७७॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

अस्तावि मन्म पूर्व्यं ब्रह्मेन्द्राय वोचत । पूर्वीरृतस्य बृहतीरनूषत स्तोतुर्मेधा असृक्षत ॥१६७७॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ꣡स्ता꣢꣯वि । म꣡न्म꣢꣯ । पू꣣र्व्य꣢म् । ब्र꣡ह्म꣢꣯ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । वो꣣चत । पूर्वीः꣢ । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । बृ꣣हतीः꣢ । अ꣣नूषत । स्तोतुः꣢ । मे꣣धाः꣢ । अ꣣सृक्षत ॥१६७७॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1677 | (कौथोम) 8 » 2 » 7 » 1 | (रानायाणीय) 18 » 2 » 3 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम मन्त्र में परमात्मा की स्तुति के लिए प्ररेणा की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(पूर्व्यम्) सनातन (मन्म) वेद-स्तोत्र, मेरे द्वारा (अस्तावि) प्रस्तुत किया जा रहा है। हे साथियो ! तुम भी (इन्द्राय) जगदीश्वर के लिए (ब्रह्म) स्तोत्र (वोचत) पाठ करो। (ऋतस्य) सत्यमय वेद की(पूर्वीः) श्रेष्ठ (बृह्तीः) बृहती छन्दवाली ये ऋचाएँ (अनूषत) जगदीश्वर की स्तुति कर रही हैं। (स्तोतुः) स्तोता की (मेधाः)धारणावती बुद्धियाँ (असृक्षत) उत्पन्न हो रही हैं ॥१॥

भावार्थभाषाः -

सामगान द्वारा परमेश्वर की स्तुति करने से स्तोताओं की ऋतम्भरा प्रज्ञाएँ उत्पन्न हो जाती हैं ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्रादौ परमात्मस्तवनाय प्रेरयति।

पदार्थान्वयभाषाः -

(पूर्व्यम्) सनातनम् (मन्म) वेदस्तोत्रम्, मया (अस्तावि) प्रस्तुतमस्ति। हे सखायः ! यूयमपि (इन्द्राय) जगदीश्वराय(ब्रह्म) स्तोत्रम् (वोचत) शंसत। (ऋतस्य) सत्यस्य वेदस्य(पूर्वीः) श्रेष्ठाः (बृहतीः) बृहतीच्छन्दस्काः इमा ऋचः(अनूषत) इन्द्रं जगदीश्वरं स्तुवन्ति। (स्तोतुः) स्तुतिकर्तुः(मेधाः) धारणावत्यो बुद्धयः (असृक्षत) सृष्टा भवन्ति ॥१॥

भावार्थभाषाः -

सामगानेन परमेश्वरस्तुत्या स्तोतॄणामृतम्भराः प्रज्ञा उद्यन्ति ॥१॥