इ꣡न्द्रं꣢ वो वि꣣श्व꣢त꣣स्प꣢रि꣣ ह꣡वा꣢महे꣣ ज꣡ने꣢भ्यः । अ꣣स्मा꣡क꣢मस्तु꣣ के꣡व꣢लः ॥१६२०॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)इन्द्रं वो विश्वतस्परि हवामहे जनेभ्यः । अस्माकमस्तु केवलः ॥१६२०॥
इ꣡न्द्र꣢꣯म् । वः꣣ । विश्व꣡तः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । ह꣡वा꣢꣯महे । ज꣡ने꣢꣯भ्यः । अ꣣स्मा꣡क꣢म् । अ꣣स्तु । के꣡व꣢꣯लः ॥१६२०॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
प्रथम मन्त्र में इन्द्र नाम से परमात्मा का विषय है।
हे साथियो ! (विश्वतः परि) सबसे ऊपर, हम (इन्द्रम्) विघ्ननाशक, परमैश्वर्यवान् परमात्मा को (जनेभ्यः वः) आप प्रजाजनों के लिए (हवामहे) पुकारते हैं। वह (अस्माकम्)हम श्रोताओं का (केवलः) अद्वितीय सखा (अस्तु) होवे ॥१॥
भले ही माता, पिता, राजा आदि हमें सुख देनेवाले होते हैं, परन्तु सदा सहायक, सदा अशरण-शरण, सदा धैर्यप्रदाता सखा तो जगदीश्वर ही है ॥१॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
तत्रादाविन्द्रनाम्ना परमात्मविषयमाह।
हे सखायः ! (विश्वतः परि) सर्वेभ्यः उपरि वयम् (इन्द्रम्) विघ्नविदारकं परमैश्वर्यवन्तं परमात्मानम् (जनेभ्यः वः) प्रजाभ्यः युष्मभ्यम् (हवामहे) आह्वयामः। सः (अस्माकम्) स्तोतॄणाम्(केवलः) अद्वितीयः (सखा अस्तु) जायताम् ॥१॥२
कामं मातापितृनृपत्यादयोऽस्माकं सुखप्रदा भवनति, परं सदा सहायः सदाऽशरणशरणः सदा धैर्यप्रदः सखा तु जगदीश्वर एव ॥१॥