अ꣡च्छा꣢ नो या꣣ह्या꣡ व꣢हा꣣भि꣡ प्रया꣢꣯ꣳसि वी꣣त꣡ये꣢ । आ꣢ दे꣣वा꣡न्त्सोम꣢꣯पीतये ॥१३८४॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)अच्छा नो याह्या वहाभि प्रयाꣳसि वीतये । आ देवान्त्सोमपीतये ॥१३८४॥
अ꣡च्छ꣢꣯ । नः꣣ । याहि । आ꣢ । व꣣ह । अभि꣢ । प्र꣡या꣢꣯ꣳसि । वी꣣त꣡ये꣢ । आ । दे꣣वा꣢न् । सो꣡म꣢꣯पीतये । सो꣡म꣢꣯ । पी꣣तये ॥१३८४॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।
हे अग्ने ! हे परमात्मन् ! आप (नः अच्छ) हमारी ओर (आयाहि) आओ, (वीतये) प्रगति के लिए (प्रयांसि) शान्तरसों को (अभि वह) प्राप्त कराओ, (देवान्) विद्वानों को (सोमपीतये) वीर रस के पान के लिए (आ) प्रेरित करो ॥२॥
संसार में सब लोग वीर होकर शान्ति का प्रसार करें ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमात्मानं प्रार्थयते।
हे अग्ने ! हे परमात्मन् ! त्वम् (नः अच्छ) अस्मान् प्रति (आयाहि) आगच्छ, (वीतये) अस्माकम् प्रगतये (प्रयांसि) शान्तरसान्। [प्रयः इति उदकनाम। निघं० १।१२।] (अभि वह) अभि प्रापय, (देवान्) विदुषः (सोमपीतये) वीररसस्य पानाय (आ) आवह ॥२॥२
जगति सर्वे वीरा भूत्वा शान्तिं प्रसारयेयुः ॥२॥