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देवता: आत्मा सूर्यो वा ऋषि: सार्पराज्ञी छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

आ꣡यं गौः पृश्नि꣢꣯रक्रमी꣣द꣡स꣢दन्मा꣣त꣡रं꣢ पु꣣रः꣢ । पि꣣त꣡रं꣢ च प्र꣣य꣡न्त्स्वः꣢ ॥१३७६॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

आयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन्मातरं पुरः । पितरं च प्रयन्त्स्वः ॥१३७६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ꣢ । अ꣣य꣢म् । गौः । पृ꣡श्निः꣢꣯ । अ꣣कमीत् । अ꣡स꣢꣯दत् । मा꣣त꣡र꣢म् । पु꣣रः꣢ । पि꣣त꣡र꣢म् । च꣣ । प्रय꣢न् । प्र꣣ । य꣢न् । स्वऽ३रि꣡ति꣢ ॥१३७६॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1376 | (कौथोम) 6 » 1 » 11 » 1 | (रानायाणीय) 11 » 3 » 3 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ६३० क्रमाङ्क पर सूर्य, भूगोल, परमात्मा, जीवात्मा तथा स्तोता इन पाँचों पक्षों में की जा चुकी है। यहाँ चन्द्रमा और सूर्य का सम्बन्ध वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

(अयम्) यह (पृश्निः) रंगीला (गौः) गतिमय चन्द्रलोक (आ अक्रमीत्) उदित हुआ है, जो (पुरः) पश्चिम से पूर्व की ओर (मातरम्) माता पृथिवी के चारों ओर (असदत्) गति करता है और (पितरम्) पितृस्थानीय (स्वः च) सूर्य की भी (प्रयन्) परिक्रमा करता है ॥१॥

भावार्थभाषाः -

चन्द्रमा पृथिवी से अलग हुआ पिण्ड है, ऐसा वैज्ञानिक लोग मानते हैं। इसलिए पृथिवी चन्द्रमा की माता है। सूर्य के प्रभाव से ही वह पिण्ड पृथिवी से अलग हुआ, इस दृष्टि से सूर्य चन्द्रमा का पिता है। चन्द्रमा पृथिवी की परिक्रमा करता-करता पृथिवी के साथ-साथ सूर्य की भी परिक्रमा करता है, ऐसा खगोल शास्त्रवेत्ताओं का निरीक्षण है ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ६३० क्रमाङ्के सूर्य-भूलोक-परमात्म-जीवात्म-स्तोतृविषये पञ्चधा व्याख्याता। अत्र चन्द्रसूर्यसम्बन्धो वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

(अयम्) एषः (पृश्निः) प्राष्टवर्णः (गौः) गतिमयः चन्द्रलोकः (आ अक्रमीत्) उदितोऽस्ति, यः (पुरः) पश्चिमतः पूर्वं प्रति (मातरम्) मातृभूतां पृथिवीम् परितः (असदत्) गच्छति। [षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु।] (पितरम्) पितृस्थानीयम् (स्वः च) सूर्यं च (प्रयन्) परिक्राम्यन् भवति ॥१॥२

भावार्थभाषाः -

चन्द्रो हि पृथिव्याः पृथग्भूतं पिण्डमस्तीति वैज्ञानिका मन्यन्ते। अतः पृथिवी चन्द्रस्य माता। सूर्यस्य प्रभावादेव तत् पिण्डं पृथिव्याः पृथग्भूतमिति सूर्यश्चन्द्रस्य पिता। चन्द्रः पृथिवीं परिक्राम्यन् तया सह सूर्यमपि परिक्रामतीति खगोलशास्त्रविदां निरीक्षणमस्ति ॥१॥