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त्व꣡ꣳ सु꣢ष्वा꣣णो꣡ अद्रि꣢꣯भिर꣣꣬भ्य꣢꣯र्ष꣣ क꣡नि꣢क्रदत् । द्यु꣣म꣢न्त꣣ꣳ शु꣢ष्म꣣मा꣡ भ꣢र ॥१३२५॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

त्वꣳ सुष्वाणो अद्रिभिरभ्यर्ष कनिक्रदत् । द्युमन्तꣳ शुष्ममा भर ॥१३२५॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्व꣢म् । सु꣣ष्वाणः꣢ । अ꣡द्रि꣢꣯भिः । अ । द्रि꣣भिः । अभि꣢ । अ꣣र्ष । क꣡नि꣢꣯क्रदत् । द्यु꣣म꣡न्त꣢म् । शु꣡ष्म꣢꣯म् । आ । भ꣣र ॥१३२५॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1325 | (कौथोम) 5 » 2 » 16 » 3 | (रानायाणीय) 10 » 11 » 1 » 3


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अब परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे पवित्र करनेवाले, रस के भण्डार परमेश्वर ! (अद्रिभिः) प्रणव-जप रूप सिलबट्टों से (सुष्वाणः) अभिषुत किये जाते हुए (त्वम्) आप (कनिक्रदत्) पुनः-पुनः उपदेश करते हुए (अभ्यर्ष) हमें प्राप्त होवो और (द्युमन्तम्) तेज से युक्त (शुष्मम्) आत्म-बल (आ भर) प्रदान करो ॥३॥

भावार्थभाषाः -

उपासक यदि परमात्मा के पास से कर्तव्य-अकर्तव्य का उपदेश, तेजस्विता और आत्मबल नहीं प्राप्त कर पाता तो उसकी उपासना में कोई त्रुटि है, ऐसा समझना चाहिए ॥३॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमेश्वरः प्रार्थ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे पवित्रीकर्त्तः रसागार परमेश ! (अद्रिभिः) प्रणवजपरूपैः पेषणपाषाणैः (सुष्वाणः) अभिषूयमाणः (त्वम् कनिक्रदत्) भूयो भूयः उपदिशन् (अभ्यर्ष) अस्मान् प्राप्नुहि, अपि च (द्युमन्तम्) तेजोयुक्तम् (शुष्मम्) आत्मबलम् (आ भर) आहर ॥३॥

भावार्थभाषाः -

उपासकश्चेत् परमात्मनः सकाशात् कर्तव्याकर्तव्योपदेशं तेजस्वितामात्मबलं च न प्राप्नोति तदा तस्योपासनायां काचित् त्रुटिरस्तीति मन्तव्यम् ॥३॥