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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: सप्तर्षयः छन्द: द्विपदा विराट् स्वर: पञ्चमः काण्ड:

प꣡रि꣢ स्वा꣣न꣡श्चक्ष꣢꣯से देव꣣मा꣡द꣢नः꣣ क्र꣢तु꣣रि꣡न्दु꣢र्विचक्ष꣣णः꣢ ॥१३१५

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स्वर-रहित-मन्त्र

परि स्वानश्चक्षसे देवमादनः क्रतुरिन्दुर्विचक्षणः ॥१३१५

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प꣡रि꣢꣯ । स्वा꣣नः꣢ । च꣡क्ष꣢꣯से । दे꣣वमा꣡द꣢नः । दे꣣व । मा꣡द꣢꣯नः । क्र꣡तुः꣢꣯ । इ꣡न्दुः꣢꣯ । वि꣣चक्षणः꣢ । वि꣣ । चक्षणः꣢ ॥१३१५॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1315 | (कौथोम) 5 » 2 » 12 » 3 | (रानायाणीय) 10 » 9 » 2 » 3


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में परमात्मा के ध्यान का विषय है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(देवमादनः) विद्वानों को आनन्दित करनेवाला, (क्रतुः) कर्ममय अर्थात् जगद्धारण के कर्मों का कर्ता, (विचक्षणः) विशेषरूप से सबका द्रष्टा, (इन्दुः) तेजस्वी और रस से भिगोनेवाला परमेश्वर (चक्षसे) दर्शनार्थ, अर्थात् साक्षात्कार के लिए (परि स्वानः) हमसे ध्यान किया जाता है ॥३॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मा का साक्षात्कार करके हम भी उसके समान दूसरों को आनन्दित करनेवाले, कर्मयोगी, विवेकदृष्टि से सम्पन्न, तेजस्वी और परोपकारी बनें ॥३॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमात्मध्यानविषयमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

(देवमादनः) विदुषामानन्दयिता, (क्रतुः) कर्ममयः जगद्धारणकर्मणां कर्ता, (विचक्षणः) विशेषेण सर्वेषां द्रष्टा, (इन्दुः) तेजस्वी रसेन क्लेदकश्च परमेश्वरः (चक्षसे) दर्शनाय, साक्षात्काराय। [चष्टे पश्यतिकर्मा। निघं० ३।११। तुमर्थे असेन् प्रत्ययः।] (परि स्वानः) परिषूयमाणः, अस्माभिर्ध्यायमानः भवति ॥३॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मानं साक्षात्कृत्य वयं तद्वत् परेषामानन्दयितारः कर्मयोगिनो विवेकदृष्टिसम्पन्नास्तेजस्विनः परोपकारिणश्च भवेम ॥३॥