प꣡व꣢मान꣣꣬ व्य꣢꣯श्नुहि र꣣श्मि꣡भि꣢र्वाज꣣सा꣡त꣢मः । द꣡ध꣢त्स्तो꣣त्रे꣢ सु꣣वी꣡र्य꣢म् ॥१३१२
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)पवमान व्यश्नुहि रश्मिभिर्वाजसातमः । दधत्स्तोत्रे सुवीर्यम् ॥१३१२
प꣡व꣢꣯मान । वि । अ꣣श्नुहि । रश्मि꣡भिः꣢ । वा꣣जसा꣡त꣢मः । वा꣣ज । सा꣡त꣢꣯मः । द꣡ध꣢꣯त् । स्तो꣣त्रे꣢ । सु꣣वी꣡र्य꣢म् । सु꣣ । वी꣢र्य꣢꣯म् ॥१३१२॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।
हे (पवमान) पवित्रकर्ता सोम परमात्मन् ! (वाजसातमः) अत्यधिक बल को देनेवाले आप (स्तोत्रे) मुझ उपासक को (सुवीर्यम्) सुवीर्य से युक्त गुण-समूह (दधत्) प्रदान करते हुए (रश्मिभिः) तेज की किरणों के साथ (व्यश्नुहि) प्राप्त होओ ॥३॥
जगदीश्वर का स्तोता उससे तेज, बल, वीर्य, सत्य, अहिंसा, न्याय, दया, उदारता आदि प्राप्त करके अतिशय कीर्तिशाली हो जाता है ॥३॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमात्मा प्रार्थ्यते।
हे (पवमान) पावक सोम परमात्मन् ! (वाजसातमः) अतिशयेन बलस्य संभक्ता दाता वा त्वम् (स्तोत्रे) उपासकाय मह्यम् (सुवीर्यम्) सुवीर्योपेतं गुणगणम् (दधत्) प्रयच्छन् सन् (रश्मिभिः) तेजःकिरणैः सह (व्यश्नुहि) प्राप्नुहि ॥३॥
जगदीश्वरस्य स्तोता तस्मात् तेजोबलवीर्यसत्याहिंसान्यायदया- दाक्षिण्यादिकं प्राप्य यशस्वितमो जायते ॥३॥