उ꣣त꣢꣫ त्या ह꣣रि꣢तो꣣ र꣢थे꣣ सू꣡रो꣢ अयुक्त꣣ या꣡त꣢वे । इ꣢न्दु꣣रि꣢न्द्र꣣ इ꣡ति꣢ ब्रु꣣व꣢न् ॥१२१८॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)उत त्या हरितो रथे सूरो अयुक्त यातवे । इन्दुरिन्द्र इति ब्रुवन् ॥१२१८॥
उ꣣त꣢ । त्याः । ह꣣रि꣡तः꣢ । र꣡थे꣢꣯ । सू꣡रः꣢꣯ । अ꣣युक्त । या꣡त꣢꣯वे । इ꣡न्दुः꣢꣯ । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । इ꣡ति꣢꣯ । ब्रु꣣व꣢न् ॥१२१८॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
आगे फिर परमेश्वर का कर्तृत्व वर्णित है।
(उत) और ‘हे मनुष्य ! तू (इन्दुः) तेज से प्रदीप्त है, (इन्द्रः) शत्रुविदारक है’ (इति ब्रुवन्) यह कहते हुए (सूरः) प्रेरक परमेश्वर ने (यातवे) व्यवहार करने के लिए (रथे) शरीररूप रथ में (त्याः) उन परम उपयोगी (हरितः) मनःशक्ति, बुद्धिशक्ति एवं प्राणशक्ति सहित ज्ञानेन्द्रियशक्ति और कर्मेन्द्रियशक्ति रूप घोड़ियों को (अयुक्त) नियुक्त किया हुआ है ॥३॥
मनुष्य का शरीर-रूप रथ परमेश्वर की महान् निर्माण-कला को सूचित करता है ॥३॥ इस खण्ड में परमात्मा तथा वीरों के उद्बोधन विषय का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥ नवम अध्याय का पञ्चम खण्ड समाप्त ॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनरपि परमेश्वरस्य कर्तृत्वमाह।
(उत) अपि च ‘हे मानव, त्वम् (इन्दुः) तेजसा समिद्धोऽसि, (इन्द्रः) शत्रुविदारकोऽसि’ (इति ब्रुवन्) इति कथयन् (सूरः) प्रेरकः परमेश्वरः (यातवे) व्यवहर्तुम् (रथे) शरीररथे (त्याः) ताः परमोपयोगिनीः (हरितः) मनोबुद्धिप्राणशक्तिसहिताः ज्ञानेन्द्रियकर्मेन्द्रियशक्तिरूपाः अश्वाः (अयुक्त) नियुक्तवानस्ति ॥३॥
मानवदेहरथः परमेश्वरस्य महतीं निर्माणकलां सूचयति ॥३॥ अस्मिन् खण्डे परमात्मविषयस्य वीरोद्बोधनविषयस्य च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिर्वेद्या ॥