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म꣣दच्यु꣡त्क्षे꣢ति꣣ सा꣡द꣢ने꣣ सि꣡न्धो꣢रू꣣र्मा꣡ वि꣢प꣣श्चि꣢त् । सो꣡मो꣢ गौ꣣री꣡ अधि꣢꣯ श्रि꣣तः꣢ ॥११९८॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

मदच्युत्क्षेति सादने सिन्धोरूर्मा विपश्चित् । सोमो गौरी अधि श्रितः ॥११९८॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म꣣दच्यु꣢त् । म꣣द । च्यु꣢त् । क्षे꣣ति । सा꣡द꣢꣯ने । सि꣡न्धोः꣢꣯ । ऊ꣣र्मा꣢ । वि꣣पश्चि꣢त् । वि꣣पः । चि꣢त् । सो꣡मः꣢꣯ । गौ꣣री꣡इति꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । श्रि꣣तः꣢ ॥११९८॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1198 | (कौथोम) 5 » 1 » 4 » 3 | (रानायाणीय) 9 » 3 » 1 » 3


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में यह वर्णन है कि कौन कहाँ निवास करता है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(मदच्युत्) आनन्द को परिस्रुत करनेवाला परमेश्वर (सादने) जीवात्मा-रूप सदन में (क्षेति) निवास करता है। (विपश्चित्) और बुद्धिमान् जीवात्मा (सिन्धोः) रसागार परमेश्वररूप सिन्धु की (ऊर्मौ) आनन्द की लहर में (क्षेति) निवास करता है अर्थात् उसमें झूला झूलने का आनन्द लेता है। (सोमः) वह रसागार परमात्मा (गौरी) शुभ्र वेदवाणी में (अधि श्रितः) स्थित है, वर्णित है ॥३॥

भावार्थभाषाः -

वेद जिसकी महिमा को गाते-गाते नहीं थकते, उस आनन्द-सागर परमेश्वर की तरङ्गों में झूला झूलता हुआ जीव कृतकृत्य हो जाता है ॥३॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ कः कुत्र निवसतीत्याह।

पदार्थान्वयभाषाः -

(मदच्युत्) आनन्दस्रावकः परमेश्वरः (सादने) जीवात्मरूपे गृहे (क्षेति) क्षियति निवसति, (विपश्चित्) मेधावी जीवात्मा च (सिन्धोः) रससागरस्य परमेश्वरस्य (ऊर्मौ) आनन्दतरङ्गे (क्षेति) निवसति, तत्र दोलारोहणमनुभवतीत्यर्थः। (सोमः) स रसागारः परमात्मा (गौरी) गौर्यां शुभ्रायां वेदवाचि। [गौरी इति वाङ्नाम। निघं० १।११।] (अधि श्रितः) स्थितोऽस्ति, वर्णितो वर्तते ॥३॥

भावार्थभाषाः -

वेदा यस्य महिमानं गायं गायं न श्राम्यन्ति तस्यानन्दसिन्धोः परमेश्वरस्यानन्दवीचिनिचयेषु दोलायमानो जीवः कृतकृत्यो जायते ॥३॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।१२।३।